Image by Franz Bachinger from Pixabay जब से पाया तुम्हें, हर खुशी मिल गई,
मन के उपवन की, एक एक कली खिल गई !
जब न तू संग थी, ये उमंगें न थीं,
सोच में मेरे चंचल, तरंगें न थीं,
साँस, धड़कन तो थीं, यूँ महकतीं न थीं,
थीं उदासी में जकडीं, चहकतीं न थीं,
एक तू क्या मिली, मन की बगिया खिली,
मुझको जन्नत की सारी, ख़ुशी मिल गई।
जब से पाया तुम्हें, हर खुशी मिल गई,
मन के उपवन की, एक एक कली खिल गई !
पा कर तेरी झलक, अब बहकते हैं पग,
और पलकें झपकना, भूल जाते हैं दृग,
जो स्वप्न मृतप्राय थे, हो गये सब सजग,
मुझे घेरे हुए थे, तम, दुख, दर्द, ठग,
साथ तू क्या चली, रौशनी खिल गई,
हमसफर साथ, सुरभित डगर मिल गई।
जब से पाया तुम्हें, हर खुशी मिल गई,
मन के उपवन की, एक एक कली खिल गई !
जब से तुम हो मिली, सौभाग्य मेरा जगा,
क्या करिश्मा हुआ, रह गया मैं ठगा,
पिछले पल तक था, दुर्भाग्य मेरा सगा,
अब काफिला दुर्दिनों का, छोडकर खुद भगा,
खुशियां जन्नत की मांगूं, क्यूं भगवान से,
तुझ में जन्नत ही सारी, मुझे मिल गई।
जब से पाया तुम्हें, हर खुशी मिल गई,
मन के उपवन की, एक एक कली खिल गई !
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