भ्रष्टाचार के इस युग में,
ईमानदारी सबसे बड़ी भ्रष्टता है,
और इस सुदृढ़ व्यवस्था के खिलाफ,
कुछ भी कहना,
सबसे बड़ी धृष्टता है ।
फिर भी यदि कोई,
ऐसी धृष्टता करेगा,
तो वह बेवकूफ, साला,
ईमानदारी का हर्जाना ही भरेगा,
क्यों कि -
आधुनिक समाज के,
सब ‘ईमानदार’ मिल,
भ्रष्टता का ऐसा रंग,
उसके मुंह पर मलेंगे,
जिससे ऐसे धृष्ट लोग,
दुनिया से अपना मुह,
छिपाते फिरेंगे ।
जो फिर भी नहीं सुधरे,
तो वे भ्रष्टता कफन में लपेट,
सीधे नर्क भेजे जायेंगे,
इनका हश्र देख,
ईमानदारी के कुलबुलाते कीड़े,
अन्धे, गूंगे, बहरे बन,
हमेशा हमेशा के लिए,
शान्त हो जायेंगे,
या खुद ही खौफ से मर जायेंगे ।
जो समझदार होंगे,
वो तो इसी रंग में,
रंग जायेंगे,
खायेंगे, पीयेंगे,
‘वाइन’ से पचाएंगे,
नित नई ‘वुमन’ के साथ
गुल छर्रे उड़ायेंगे ।
अरे,
संडाध भरे माहौल को,
संडाध प्रिय ही अपनाएगा,
मुर्दों में तो इंसान, मुर्दा बनकर ही रह पायेगा !
मुर्दों में तो इंसान, मुर्दा बनकर ही रह पायेगा !!