जश्न, उत्सव, त्यौहार,
हैं सब खुशियों के पर्याय,
इनका एक ही है अनिवार्य कार्य -
स्वेच्छा से, सबको एक साथ लाना है,
आपसी सौहार्द, विश्वास को बढ़ाना है,
ये खुद बन जाते हैं,
एक दूसरे को जोड़ने का जरिया,
तो बहने लगता है -
अपनत्व, प्यार का अनुपम, अद्भुत दरिया,
जश्न आपस में खुशियां बांटने का साधन हैं,
यथार्थ में,
शुद्ध, सात्विक, नैतिक, आत्मीय यही धन है।
ये सभी में अपनापन घोलते हैं,
एक सूत्र में बांधते है, जोड़ते हैं,
सबका आडम्बर, दम्भ, अहंकार भगाते हैं,
प्रेम, विश्वास, सद्भाव और सौहार्द को जगाते हैं,
सभी के मन, एकत्व भाव से विरक्त हो जाते हैं,
एक जुटता के भाव,
हाथ की उँगलियों से बने,
मुक्के जैसे सशक्त हो जाते हैं,
सभी रिश्तों की गहराई बढ़ाते हैं,
देते हैं परस्पर सम्मान,
सभी व्यक्ति अनूठी, असीम संतुष्टि पाते हैं,
अन्तर्मन खुशियों के महासमन्दर की,
उश्रंखल लहरों पर सवार,
परमानन्द की अनुभूति में मग्न हो जाते हैं।
जब प्रफुल्लित मन से कार्य करते हैं,
अपने काम में अद्भुत निखार पाते हैं,
उत्कृष्ट परिणाम मिलते हैं,
सम्मान मिलते हैं,
सन्तोष पाते हैं।
जब कभी अद्भुत क्षणों को,
बनाना होता है यादगार,
तो जश्न, उत्सव,
समय की धूल को हटा,
पुनर्जीवित करते हैं,
वही अहसास हर साल, बारम्बार,
जैसे जन्मदिन, शादी की खुशियां अपरम्पार।
जब ईश्वर, किसान, सैनिक, सहयोगी, रिश्तेदार आदि,
अपनी अनमोल कृपाओं से,
करते हैं हम पर उपकार,
तो ज्ञापित करते हैं धन्यवाद,
या फिर व्यक्त करते हैं,
तरह तरह से आभार,
जैसे गणतंत्र, स्वतंत्रता, मातृ दिवस,
सभी की कुर्बानियों को याद करते हैं,
हर साल बार बार !
कभी संजोने परम्पराओं की धरोहर,
आयोजित करते हैं -
धार्मिक, सांस्कृतिक जश्न मनोहर,
जो नव पीढ़ी में करते हैं,
नैतिक मूल्यों का संचार,
जो बनते हैं सुसंस्कारों का आधार,
आत्मबल, आध्यात्म से कराते हैं परिचय, साक्षात्कार,
जो उन्हें हर परिस्थिति में,
धैर्य रख, सन्तोष से जीना सिखाते हैं,
हर हाल में खुश रह कर,
जीवन को खुशहाल बनाते हैं।
जब घटते प्रतिफल का नियम, ( Law of diminishing return )
जीवन की एकरसता, ( Monotony )
भरने लगते हैं मन में ऊब,
और उदासीनता लगे छाने,
ढूंढ कर अनगिनत बहाने,
जश्न, उत्सव, त्यौहार,
आत्मा को करने तरोताजा,
अपनत्व से पुकारते हैं, बुलाते हैं कि -
" आजा, आजा,
संग साथ सब को ले ले,
अब अपनी दिनचर्या कुछ बदल ले,
आ, आजा फिर से साथ आजा,
माज़ा के संग, पीजा खाजा।
कुछ क्षण को मुस्कुरा जा,
कुछ नए गीत गुनगुनाजा,
आ, नया धमाल कोई मचा जा,
कोई जश्न फिर मना जा,
नव ऊर्जा, नव प्रेरणा का,
है मुझ पर वृहद खजाना,
तू मुफ्त मुझ से, ले कर,
अपनी डगर चला जा,
बस इस ऊर्जा, प्रेरणा की कीमत,
अपनी मोहक मुस्कान से चुका जा।”
यादें मधुर क्षणों की,
दौलत इन साझा अनुभवों की,
तुझको बुला रही हैं,
वो महफ़िलें कहकहों की ।
नए जश्न तेरे जहन में,
उल्लास नव भरेंगे,
नई ऊर्जा को पाकर,
पग, नव उड़ान भर सकेंगे,
नकारात्मकता सारी,
सकारात्मक बनेगी,
मंजिल तेरी तो तेरे,
कदमों तले मिलेगी,
तब सारी दुनियां तेरे,
सम्मान में जुटेगी।
अनवरत काफिले,
जश्नों के फिर मिलेंगे,
हर ओर तुझको सुरभित,
गुलशन खिले मिलेंगे।