क्या मानव सब जीव जन्तु ही, करते चीख पुकार,
इस गर्मी के कारण अब सब, हैं बेवश, लाचार,
वरुणदेव से विनती करते, ' हर लो कष्ट हमारे,
प्राण सूखते जल के कारण, रक्षक बनो हमारे,
अमृत जल की वर्षा करने, भेजो मेघा प्यारे!
आच्छादित करके नभ से, बरसें मेघा प्यारे!!
झुलस रही है सृष्टि, जल्दी आओ मेघा प्यारे!!!

"तुम ने लालच और स्वार्थ का, ही बस मार्ग चुना है,
क्या कभी तुमने तडित व गर्जन, का दुख दर्द सुना है?
हरा आवरण इस धरती का, तुम ने नष्ट किया है,
जगह जगह पर कंक्रीट का, जंगल खडा किया है,
हरियाली से वाष्पितकृत हो, पानी भाप बनता है
उडता पानी वातावरण को, ठण्डा ही रखता है,
यही भाप ऊपर जाकर फिर, मेघ रूप धरती है,
ओले, बर्फ, वारिश बन फिर, धरा तृप्त करती है,
प्राकृतिक जल चक्र को, मानव, तुमने ही तोडा है,
अब तो भूमिगत जल का, भण्डार बचा थोडा है,
अभी त्राहि त्राहि गर्मी से करते, जल्द खत्म हो पानी,
प्राकृतिक संसाधन की तुम ने, कद्र नहीं कुछ जानी,
अब हवा, अन्न, जल सबको देना, वश में नहीं हमारे,
चिल्लाना सब व्यर्थ तुम्हारा, अब पानी कहाँ बचा रे।
टूटा जल का चक्र, मैं पानी, लाऊं कहां से प्यारे?"

अभी समय है, सृष्टि बचा लो, कर लो कायाकल्प,
महाविनाश से बचने का है, केवल यही विकल्प -
एक ही मुहिम चलाओ, जल्दी ज्यादा वृक्ष लगाओ,
प्राणदायिनी इस सृष्टि को, मिल कर सभी बचाओ,
यही शपथ लो, यही मुहिम हो, वरना जीना हो दुश्वार
परिधान हरा दें धरती मां को, करें पुष्पों से श्रृंगार।
हरियाली से ही सम्भव है, हवा, अन्न, जल प्यारे,
बता प्राकृतिक सन्तुलन खो, जीवन कहां बचा रे?

मेघों का अस्तित्व मिटेगा, इतिहास बनेगा प्यारे,
सिमट जायेगा बस कवित्व तक, बरसे मेघा प्यारे!

.    .    .

Discus