अपने सुरेश कलमाड़ी जी को देखिये,
बेचारे को याददास्त खोने की,
यानि डिमेन्शिया (Dementia) की,
बीमारी हो गई है,
मेडिकल रिपोर्ट के सम्मुख,
अपनी न्याय व्यवस्था (Judiciary) भी,
पंगु, लाचार हो गई है,
बेचारे जज भी,
चाह कर भी न्याय नहीं कर पायेंगे,
कलमाड़ी जी के दुश्मनों के,
सब मंसूबे ध्वस्त हो जायेंगे,
उनके खिलाफ सारे के सारे साक्ष्य,
धरे के धरे रह जायेंगे,
बेचारे जज, ऐसे भ्रष्टों को,
“बेनिफिट ऑफ़ डाउट“,
का कानूनी फायदा,
देने को बाध्य हो जायेंगे,
विश्वव्यापी भ्रष्टों को,
नया सटीक रास्ता दिखायेंगे।
अरे मेरे यार,
नए नए कानूनी दांव पेच सीख लो,
वरना धनाढ्य होते हुए भी,
फुटपाथ पर बैठे चिल्लाओगे -
“अल्लाह के नाम पे भीख दो।”
देखो भ्रष्टाचार का पैसा,
दिमाग वालों को ही पचता है,
क्योकि ऐसा व्यक्ति ही,
अपने परिपक्व सोच से,
मेहनत से कमाई, धन दौलत से,
नित नये स्वांग रचता है,
कभी नहीं फसता है,
क्योंकि -
बड़े बड़े डॉक्टर,
बड़े बड़े डॉक्टरी संस्थान,
बड़े बड़े वकील और कोर्ट के कारिन्दों का,
पूरा का पूरा हुजूम (Caucus),
इन्हें बचाने में लग जाता है,
बचने के नये नये तरीके,
ढूंढता है, सुझाता है,
हम भारतीयों में अद्वितीय प्रतिभा है,
गजब की क्षमता है,
दुनियां वालों का दिमाग,
इतना कहाँ चलता है?
तभी तो फेसबुक, गूगल जैसों का काम,
हम भारतीयों के बिना नहीं चलता है।
हम अच्छी तरह जानते हैं कि-
पैसा ही, पैसे को खींचता है,
और हमारे उपजाऊ दिमाग को सींचता है,
जो हर मुश्किल समस्या का हल सुझाता है,
हर ला इलाज बीमारी का भी,
रामवाण इलाज बताता है,
ये संसार, हम भारतीयों को,
कोई ऐसे ही विश्व गुरु थोड़े ही,
मानता है, बताता है।
ये बीमारी बहुत ही संक्रामक (Infectious) है,
केवल नामी गिरामी भ्रष्टों को ही,
चुन चुन के अपना शिकार बनाती है,
गरीबों से डरती है,
उनके पास नहीं फटकती है,
ई डी, एन आई ए,
सी बी आई, पुलिसिया जैसे गुंडों के ,
जुल्मों से बचाती है,
जनता भी बुरे कर्मों का फल कहके,
शान्त हो जाएगी,
बुरे कामों का फल बुरा ही बतायेगी,
कानून के आगे बेचारी क्या कर पाएगी?
वास्तव में यह डिमेन्शिया,
कोई रोग नहीं,
बल्कि -
"समृद्ध वर्ग सुरक्षा हेतु,
नायाब तकनीक है",
जो अभी भारत में,
"एक्सपेरिमेंटल स्टेज" में है,
बहुत ही जल्दी,
अपनी सुढृढ़ होती, अर्थ व्यवस्था में,
सर्वोत्तम योगदान दे कर,
चार चांद लगायेगी,
विश्व बन्धुत्व भावना में नया आयाम,
नया कीर्तिमान बनायेगी।
हम भारतीय लोगों को,
हमारी अतृप्त पैसे की भूख,
स्वाभिमान की निरंतर प्यास,
बना देती है हमें कुछ ऐसा खास,
जिसके कारण जहन में रहता है,
सिर्फ सकारात्मकता का वास,
और हम हर विपत्ति में भी,
अवसर खोज लेते हैं,
बीमारी में भी लाभ ढूंढ लेते हैं,
नकारात्मकता के भाव,
हम से कोसों दूर रहते हैं,
भले ही कष्ट सहते हैं,
परन्तु हर पल,
हमारे मस्तिष्क में,
केवल और केवल,
लोक कल्याण के ही भाव रहते हैं।