लेकिन अभी भी कुछ अपवाद स्वरुप कहिये या विलुप्त होते संस्कारों की धीमी गति की रेल या फिर ईश्वरीय पाप पुण्य का खेल, हम जैसे खुश किस्मत बहुत से अभी भी हैं। जिनका यह मानना है कि ---
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं, जिनके प्रतिफल हम पाते हैं,
अपने बच्चे खुश होकर संग में, विश्व भ्रमण तक करवाते हैं,
वरना -
नवपीढ़ी के बच्चे, मात पिता को, वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं…
मैं उलझा था, धनार्जन में, पर पत्नी ने तो थे सन्नाटे काटे,
और अकेले ही बच्चों को, नैतिकता, सुसंस्कार थे बांटे,
सहयोगी पत्नी और बच्चे, सौभाग्य से ही तो मिल पाते हैं ।
सच्चे सहयोगी, पत्नी, बच्चे, शुभ कर्मों से ही मिल पाते हैं ।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं…
खुशियों के लॉकर खुलते हैं, जब जब बच्चों से मिलते हैं,
जीवन की अन्तिम यात्रा में, महके, रौशन पथ मिलते हैं,
अपनों के अपनत्व प्यार से, तन मन के दुख उड़ जाते हैं ।
अपनों के सम्मान भाव से, सब जख्म उम्र के भर जाते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं...
पाप, पुण्य कभी ना जाने, कर्तव्य निर्वहन स्वाभिमान थे,
रखे हुए थे क्षेत्र यह सीमित, हम ने अनुभव और ज्ञान के,
अब स्वयं देखकर, नवपीढ़ी में, सुसंस्कार रोपित होते हैं ।
और वृद्धावस्था के जख्मों की, वे एक मरहम बन जाते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं…
अब अपने बच्चों के बच्चे भी, जहाँ जहाँ भी हम जाते हैं,
हमें अपनी दृष्टिपरिधि में रखते, और थामने लग जाते हैं,
तब श्रद्धा से, ये शीश हमारे, प्रभु चरणों में झुक जाते हैं।
पल पल अपने सर श्रद्धा से, प्रभु चरणों में झुक जाते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं…
कभी वेगास, लेक टोहो, कभी योशेमिटे नेशनल पार्क,
'डिज़्नी लैंड', कभी 'सी वर्ल्ड', आज्ञाकारी डॉल्फिन, शार्क,
व्हाइट हाउस, लाइट हाउस, और सर्वोच्च एम्पायर स्टेट,
विश्व विख्यात नियाग्रा फाल्स, सुंदर अद्भुत जगह अनेक।
हांगकांग पीक ट्राम, स्काई टेरेस कितने देख यहाँ पाते हैं ?
कुदरत के नायाब नज़ारे, सौभाग्य से ही दृग लख पाते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं…
कभी ''क्रूज'' से गए मैक्सिको, कभी घुमाया देश दुबई,
चलचित्रों में नाम सुना जो, सुन्दर होनोलूलू द्वीप हवाई,
नहीं कभी विश्वास हमें था, होंगे ऐसे भी सौभाग्य हमारे,
जब ‘पैरा सेलिंग’ से उतरे तब, महासिन्धु ने पांव पखारे।
ऐसे अद्भुत अनुपम अनुभव, बच्चों के संग, हम पाते है।
अपनों के अपनत्व प्यार से, भाव विव्हल हम हो जाते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं…
धन्यवाद प्रभु का करने से, नहीं कभी भी हम थकते हैं,
ये क्रम रखा निरन्तर कायम, जब भी सोते या जगते हैं,
नयनों के प्रासुक जल से, प्रभु अभिषेक किया करते हैं,
बदले में बच्चों के सुख की, नित्य प्रार्थना हम करते हैं।
आशीषों की धन दौलत बस, हम अपनों को दे पाते हैं।
और दुआओं से भरी टोकरी, अपनों को हम दे पाते हैं।
कुछ तो निश्चित पुण्य किये हैं, जिनके प्रतिफल हम पाते हैं,
अपने बच्चे खुश होकर संग में, विश्व भ्रमण तक करवाते हैं,
वरना -
नवपीढ़ी के बच्चे, मात पिता को, वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं।