हिम मण्डित माँ का भाल मुकुट, भोले भाले पर्वतवासी,
दिल सोने के दर्पण जैसे, सुन्दर जिन की काया काठी,
कर्मठ हैं, निपुण अपने फन में, ये केसर घाटी के वासी,
आतंक के कारण, भूखे भी रहे, औ' खाई थी रोटी बासी ।
सैलानी आते थे जिस पथ पर, वह सूनी राहें ताक, थके ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

कहते हैं स्वर्ग है धरती पर, तो वह केवल कश्मीर में है,
पर देख इसे वो ही पाए, लिक्खा जिन की तक़दीर में है,
न जाने क्यूँ इस जन्नत की, सारी खुशियों को ग्रहण लगा,
आतंक, अलगाव के सर्पों ने, इसको जकड़ा, खूब डसा ।
आतंक, अलगाव के कारण ही, सबने घातक आघात सहे ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

तब अलगाव वाद के दीवाने, इनसे पत्थर फिकवाते थे,
और धारा तीन सौ सत्तर के, फायदे इनको बतलाते थे,
कर आतंकवाद में लिप्त इन्हें, नित नरसंहार कराते थे,
ये उन की बातों में फंस कर, बस आतंकी बन जाते थे ।
बचपन से जिनके तन मन में, नफरत, कट्टरता रोप दिये ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

कभी सैनिक के हेल्मेट से, फुटबॉल ही खेला करते थे,
बेचारे सैनिक, सड़कों पर, अपमान भी झेला करते थे,
लेकिन बन्दूकें चला सकें, थी कहाँ उन्हें यह आजादी,
न था विकास का अंश कहीं, दिखती थी केवल बर्बादी ।
अब हर युवा उचित निर्देशन में, अपने सपने साकार करे ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

आतंकी, सेना की वर्दी में, कुकर्म, जुल्म को आते थे,
ये मिले देशद्रोही, जिनको, बस सेना के लोग बताते थे,
दुष्कर्मों, जुल्मों की, तोहमत, सेना पर लग जाती थी,
देशद्रोहियों की टोली ऐसा, झूठा प्रचार करवाती थी।
कारण था, देशद्रोह गतिविधियों से, भारत की सेना दूर रहे ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

आतंकी द्वारा घर में ही, बेवश बिटियां लुट जातीं थीं,
परिवार अगर कुछ कहता था, तो लाशें बिछ जातीं थीं,
वह बर्बरता की हदें देख, चीखें उन की घुट जातीं थीं,
अपनों पर होते जुल्म देख, रूहें खुद ही उड़ जातीं थीं ।
डर से कश्मीरी लोगों ने, कान, जुबां, नयन, मुख बन्द रखे ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

कहा, तीन सौ सत्तर अगर हटा, जल जला मुल्क में आयेगा,
फिर कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला, कोई नहीं मिल पायेगा,
अब तीन सौ सत्तर ख़त्म हुई, पर शान से ही लहराये तिरंगा,
अलगाव, आतंक घुस गये बिलों में, ना कर पाया कोई दंगा ।
अब तो विकास के पथ पर ही, हर कश्मीरी के कदम बढे ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

अब तो कश्मीर के चप्पे चप्पे पर, उन्मुक्त घूमते सैलानी,
"कश्मीर पर्यटन पूर्ण सुरक्षित", यही बात विश्व में फैलानी,
अब तो विकास के कामों में, हमें एक नई सुनामी है लानी,
"है स्वर्ग से भी ज्यादा सुन्दर", सच्चाई जग को दिखलानी,
कश्मीर पुनः समृद्ध, खुशहाल होगा, जैसे जैसे पर्यटन बढे ।
क्या क्या झेला वाशिन्दों ने, पर कभी जुबां से कह न सके ।।

अब जर्रा जर्रा कश्मीरी, हर ओर हमें गुलजार दिखे !
और कश्मीरी लोग़ सभी, मस्ती लेते, खुशहाल मिले !!
अब अपने कश्मीर को, ना कभी किसी की नजर लगे !!!

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