Photo by Kulik Stepan: Pexels

“बहुत दिनों से नहीं सुनाई, मैंने अपनी कविता तुमको,
करना अब उदरस्थ पड़ेगा, गरल कंठ से नीचे तुमको,
अपनी कहना, मेरी सुनना, हम दोनों ने वचन लिए थे,
उन वचनों की लाज बचाने,यह तो सहना होगा तुमको ।”

"नहीं पता था, तुम एक कवि हो, वरना मैं ये वचन न लेती,
उठती मण्डप छोड़ पिता को, करने कन्यादान ना देती,
‘तुम कविताएं भी लिखते हो’, तुमने थी यह बात छुपाई,
सुना सुना कर अपनी कविता, व्यर्थ वो पहली रात गंवाई ।

बहुत सुनी है अब तक मैंने, तुम जो भी बक बक करते हो,
झूठी वाह वाह करती हूँ, जब बे सुर झक झक करते हो,
कान पक गए सुनते सुनते, और न अब मैं कतई सुनूंगी,
मौन साध लो, वरना देखो, मैं पंखे से लटक मरूंगी ।”

“मैके जाने की धमकी तो, रोजाना सुनते आये थे,
तेरे हर नाजायज नखरे, यही सोच सहते आये थे,
बेमन से ही चलो परन्तु, कविता तो सुन ही लेती हो,
मुंह पर वाह वाह कर पीछे, चाहे अपना सर धुनती हो ।

कितनी सहपाठिन बालायें, इस कवित्व पर मरी हुई थीं,
धो कर अपने हाथ हमारे, पीछे सारी पड़ी हुई थीं,
शायद तुमको पता नहीं क्यूँ, हमने तुम से शादी की थी,
ठुकराया उन सबको क्योंकि, तुम एम ए हिंदी पढ़ी हुई थीं ।

मैंने सोचा था कि तुम में, कुछ साहित्यिक अभिरुचि होगी,
मेरी नीरस, बेढंगी कृतियों से, ना तुमको आपत्ति होगी,
जैसे इस भावशून्य चेहरे का, तुम श्रृंगार किया करती हो,
वैसे ही मेरी कविता का, थोडा कुछ श्रृंगार करोगी ।

नहीं अकेला, हर पति को ही, समझौता करना पड़ता है,
खुद के और बच्चों के कारण, पत्नी से डरना पड़ता है,
पाँव तले की जमीं खिसकती, प्राण पखेरू से उड़ते हैं,
मेरी चलती हुई जीभ पर, अलीगढ़ी ताले जड़ते हैं ।

यही वजह है मेरे घर में, कोई सीलिंग फैन नहीं है,
वैसे कवितायेँ कहने पर,  सरकारी कोई बैन नहीं है,
मेरे ईश्वर की तो मुझ पर, वैसे पूरी पूरी अनुकम्पा है,
पर घर में कविता सुना सकूँ, इतना ही सुखचैन नहीं है ।

अब उपलब्ध सोशल मीडिया पर, श्रोता, पाठकजन बहुतेरे,
जिन के 'लाइक्स' और 'कमेन्ट्स’ ने, मेरे सारे दुर्दिन फेरे,
पत्नी की मिन्नत करना छोड़ा, सम्पूर्ण यहीं सन्तोष मिला है,
‘दिनभर फोन लिए रहता हूँ’, अब उन्हें मुझसे यही गिला है।

जब से, पत्नी के जुल्मों को, कविता में लिखना सीखा है,
साहित्यिक मंचों को मुझमें, हिम्मत का जज्बा दीखा है,
मैं अपनी सच्ची बातों को, जब जब कविता में लिखता हूँ,
पत्नी के तेवर बतलाते, उन्हें सच लगता, कड़वा तीखा है ।

अब अक्सर ‘रिफ्लेक्शंस टीम’ ने, पुरुस्कार से मुझे नवाजा,
अनुभूति नई संतुष्टि की दी, अनुभव मिला नया और ताजा,
धन के संग सम्मान का मिलना, मुझे लगा सोने पे सुहागा,
पर जन्मजात वह भाग्यवान है, मैं बचपन से रहा अभागा ।

दिनदहाड़े, आँखें दिखाकर, सब कुछ लूट लिया करती है,
कलयुगी ढीठ आधुनिक पत्नी, पति से कहाँ डरा करती है ?
पत्नी की नजरों में पति की, अब कुछ भी औकात नहीं है,
पाक तो है बदनाम व्यर्थ में, घर घर आतंकिस्तान यहीं है ।।

.    .    .

Discus