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हैँ संग हम तुम, क्यूँ मग़र तन्हाइयाँ हैं?
क्या दिलों के बीच, गहरी खाइयां हैं?

एक चुप्पी सी इधर, एक चुप्पी भी उधर,
पर प्रतिध्वनित होतीं रहीं नाराजियां हैँ।

मौन धारण कर लिया है, पर कौन जाने,
हुए दफ़न कितने राज और नाकामियाँ हैँ।

यद्यपि सब ठीक, शान्त सा दिख रहा है,
पर तूफ़ाँ, बवंडर से भरी खामोशियाँ हैँ।

हर कोई ये सोचता, वो ही सही, परिपूर्ण है,
पर सबने ही पाली हुईं, ये गलतफहमियां हैँ।

उम्र खो कर, बस यही अनुभव कमाया,
हर जिन्दगी की, बहुत कटु सच्चाईयां हैँ।

मतलब निकलते ही, सभी मुँह मोड़ लेते,
तब तुम्हारे हाथ में, सिर्फ ये रुसवाईयां हैं।

जिन्दगी का कड़वा, तीखा, सच यही है,
चंद पल सुख के, शेष सब नादानियां हैं।

जो मिला संतुष्ट उसमें रहें, आदत नहीं,
बस इस तरह बढ़तीं रहीं, दुश्वारियां हैं।

सोच के सांचे में तेरे, जो न ढल पाया कभी,
उस शख्स में तो, खामियां ही खामियां हैं।

अब जिंदगी का अन्त, निश्चित पास में है,
अब कद से लम्बी, हो चुकीं परछाइयां हैं।

मन का दर्पण कुछ इस तरह तोड़ा गया है,
अब महफ़िलों, मेलों में भी, वीरानियां हैं।

ये शमा खुशी से, रोशन जहां को कर रही है,
पर तले उसके छुपी, घोर तम की आंधियां हैँ।

ये हुश्न बेचारा, कब भला ये जानता है,
जान की, दुश्मन बनीं अंगड़ाइयाँ हैँ।

हुश्न वालों को कब, कहाँ, इसकी खबर है,
मदहोश हुईं, कितने दिलों की हस्तियाँ हैँ।

मासूमियत, नाजो, अदा, जुल्म के पर्याय हैँ,
जान लेने पर तुलीं, यह सभी गुस्ताखियां हैँ।

देखिये इस हुश्न की, क्या गजब की दास्तां है,
आग में इसके जलीं, हसरतों की बस्तियाँ हैँ।

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