Image by Pexels from Pixabay लेखनी जब जब उठे तब, यह ध्यान रहना चाहिये -
हर सृजन में, कल्याण का ही, भाव रहना चाहिये !
और हर सृजन, नवप्रेरणा का, स्रोत रहना चाहिये !!
लेखनी जब जब उठे तब…..
चिन्ता, कुण्ठा, तनाव, अवसाद जो मन में भरे,
वो सामर्थ्य हो सृजन में, जो कष्ट सबके ही हरे,
लेखनी से, संवेदना का, सलिल बहना चाहिए !
लेखनी जब जब उठे तब…..
माना सब की राहों में ही, पग पग बिखरे कांटे हैं,
लेकिन ईश्वर ने, दुनियां में, फूल ही ज्यादा बांटे हैं,
शब्दों के मकरंद से हर मन, महका रहना चाहिये।
लेखनी जब जब उठे तब…..
अधिकार कलम का - 'निर्भीक, सत्य हर बात लिखे',
कर्तव्य कहे - 'निष्पक्ष रहे, दर्पण जैसा साफ़ दिखे',
स्वार्थ, झूठ के षडयंत्रों का, साम्राज्य ढहना चाहिये !
लेखनी जब जब उठे तब…..
सकारात्मक सोच का, साहित्य लिखना चाहिये,
साहित्य के दर्पण में केवल, सत्य दिखना चाहिये,
उद्देश्य हो, हर जीव का, बस कष्ट मिटना चाहिये !
लेखनी जब जब उठे तब, यह ध्यान रहना चाहिये -
हर सृजन में, कल्याण का ही, भाव रहना चाहिये !
और हर सृजन, नवप्रेरणा का, स्रोत रहना चाहिये !!
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