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देश हित और जनहित में आप सभी से विनती है कि चीन से आयातित वस्तुओं का बहिष्कार कर ज्यादा से ज्यादा स्वदेशी चीजों का प्रयोग कर अपने गरीब देशवासियों को समृद्ध करने का प्रयास करें .


ना दीवाली चीन का उत्सव, नाहीं परम्परा है,
पर सस्ते, पटाके, झालर, हम को बेच रहा है,
बदले में लक्ष्मी, समृद्धि, उन को भेज रहे हैं,
अपने भाई बन्धु बेवश, यह सब देख रहे हैं!

मिट्टी के जो दीये बनाते, इस आशा पर जीते -
'दीप बिकें तो, अपने दिन भी, खुशियों के संग बीते',
पर हम अन्जाने में उन के, सपने तोड़ रहे हैं,
अपनों के प्रति कर्तव्यबोध से, आँखे मोड़ रहे हैं!

नए सोच, नव तकनीकों से, सक्षम उन्हें बनायें,
उनके घर, मन, आँखों के, सपने सफल बनायें,
मेहनतकश को गर हम देदें, थोड़ी से खुशहाली,
उनके भी हक में आ जाए, खुशियों भरी दीवाली!

माँ सरस्वती, माता लक्ष्मी, माटी की शुभ गन्ध,
माटी निर्मित कहें गणेशजी- "है सबको सौगन्ध,
चीज़ स्वदेशी ही सबको, सुख समृद्धि देने वाली,
केवल माटी के दीयों से, जगमग करो दीवाली!”

हम सब माटी के पुतले, संकल्प यही लें मिल के,
माटीकर्मी भी पूरे कर लें, अपने अरमां दिल के,
वह और उनके बच्चे भी, कुछ जी लें खुशहाली में,
माटी के ही दीप जलाना, अब हर बार दिवाली में!

यह विनम्र अनुरोध हमारा, पूरे भारत में पहुंचाना,
माटी के ही दीये लाना, माटी के ही दीप जलाना,
बात हमारी भूल न जाना, सब को है समृद्ध बनाना,
सबने सपने पूरे करके, सबने ही खुश होकर गाना-

“भारत का जन जन जीयेगा, मस्ती में, खुशहाली में!
घर घर माटी के दीप जलेंगे, अब से हर दीवाली में!”

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