Source: Sergio Rodriguez-Portugues/unsplash

कभी घास के कालीनों पर, घण्टों हम घूमा करते थे,
पल्लव पल्लव विखरे मोती, पांव सुबह चूमा करते थे,|
धरा के तारे जुगनुओं से, जड़ित धरा, कैसे दिखलाऊँ ,
नन्हे मुन्ने इन बच्चों को, कैसे वह सब दृश्य दिखाऊँ,
बिन देखे विश्वास करें ना, कैसे मैं विश्वास दिलाऊँ ?
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

तोते, चिड़िया बहुत परिंदे, जब दाना चुगने को आते,
नाचनाच कर, घूमघूम कर, गीत मधुर कितने थे गाते,
कभी चोंच में दबा के दाना, तुरत फुर्र से वो उड़ जाते,
और घोसलों में बच्चों के, मुख में दे, वापस आ जाते,
ऐसे मनभावन क्षण, करतब, सुर, संगीत कहां से लाऊं ?
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

वसुधा की हरियाली का, नोंच नोंच कर क्षरण कर दिया,
कंक्रीट जंगल के पिजरों में, रहने को 'आदर्श' घर लिया,
गगन चूमते पिंजरों से डर कर, धूप, चांदनी भग जातीं हैं,
वे चांद, सितारों की बारातें, नजर हमें अब कब आतीं हैं,
कैसे चाँद सितारों वाले, झिलमिल नभ के दृश्य दिखाऊं ?
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

याद हैं, कल कल बहते झरने,खूब साफ नदियां बहतीं थीं,
लहरों संग अठखेली करने, हर पल उकसाती रहतीं थीं,
हवा सुगन्धित,तट,जल शीतल,स्वर्ग समान हमें लगते थे,
सूर्य, चन्द्र किरणों के करतब, देख देख कर न थकते थे,
कैसे वो रस, गंध, मधुरस्वर, उथली नदियों में भर पाऊं ?
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

आज अभी तो लगा मास्क है, अब आगे जाने क्या होगा,
ताउम्र बांधेंगे पीठसिलेंडर या, इनक्यूबेटर में रहना होगा,
हम अपनी ही, नव पीढ़ी पर, अनजाने में, जुल्म ढा रहे,
प्राकृतिक सह अस्तित्व भूल, जीवन का आधार खा रहे,
हवा, अन्न, जल भरे जहर से, कैसे इनकी जान बचाऊं ?
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

कहीं पूंछ ना बैठें बच्चे, ‘’तब इस प्रकृति की बर्वादी पे ,
आप भला क्यूं चुप रहते थे, दर्शक मूक बने रहते थे ‘’,
इसीलिये तो बच्चों से भी, शरमाता हूँ, आँख चुराऊँ,
कभी मैं सोचूं किसी अँधेरे, कुँए में जा कर छुप जाऊं,
या फिर चुल्लू भर पानी में, कहीं डूबकर, मैं मर जाऊं ।
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

आओ हम सब आज अभी, जल्दी से एकजुट हो जाएँ,
और प्रदुषण के दानव को, जल्दी मिल कर दूर भगाएं,
ज्यादा ऑक्सीजन जो देते, वो जंगल, पौधे, पेड़ उगाएं,
अपने हर इको सिस्टम को,ज्यादा सुदृढ़, समृद्ध बनाएं,
संरक्षित कर पर्यावरण को, हर जीवन, अस्तित्व बचाऊं,
जिस से बच्चों के सम्मुख मैं, लज्जित होने से बच जाऊं,
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

जल के स्रोत करें ना गन्दे, प्रकृति इन्हें खुद साफ़ करेगी,
जीव जन्तु और वनस्पति का, स्वयं संतुलन ठीक करेगी,
जो विलुप्त होने की राह पर,पहले उन्हें सहेजूं, उन्हें बचालूं
प्रकृति प्रेम औ' संरक्षण को, जन जन में पूज्यनीय बना दूं,
यही निरन्तर मुहिम चले अब, वही प्रकृति पुनः पा जाऊं,
पा अपराध बोध से मुक्ति, बच्चों के संग घुल मिल जाऊं .
मैं अपराधी नव पीढ़ी का, कैसे इनसे आँख मिलाऊँ ?

सृष्टि भी धमकाती - “ सुधरो, या तेरी भाषा में समझाऊं,
तेवर, ट्रेलर बहुत दिखाये, आ चल पूरी फिल्म दिखाऊं,”
ऐसी दिव्य शक्ति दो ईश्वर, जग वालों को समझा पाऊं,
इस वसुधा के संरक्षण को, सब का ही सहयोग जुटाऊं,
खुशियों के प्राकृतिक रंग से, वसुधा का श्रृंगार कराऊं !
मैं सोंपूं स्वर्ग बना कर धरती, तब ही ईश्वर के घर जाऊं !!
कभी न ऐसा हो कुछ जिससे, अपनी नजरों में गिर जाऊं !!!

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