छिप छिप अश्रु बहाने वालो, अश्रु कलम की इंक बना लो,
यही सत्य पैगाम लिखो और,इसको जनजन तक पहुंचा दो -
“ अश्रु बहा देने से कुछ भी, हासिल नहीं हुआ करता है,
बैठे हार मान कर उन पर, ये जग सिर्फ हंसा करता है,
मंजिल उसको ही मिलती है, प्रयास निरन्तर जो करता है ।”
मंजिल उसको ही मिलती है …….
सुनो ! मोती व्यर्थ लुटाने वालो, धैर्य, मनोबल खोने वालो,
हस्ती स्वयं मिटाना छोडो, नभ को खींच, जमीं पर ला दो,
कर्मयोगियों के सम्मुख तो, पर्वत स्वयं झुका करता है ।
मंजिल उसको ही मिलती है………
हर विपत्ति में अवसर खोजो, संघर्षों को मीत बना लो,
यही सफलता मूलमन्त्र है, इसको जीवन में अपना लो,
बिना परिश्रम के, कुछ भी, हासिल नहीं हुआ करता है ।
मंजिल उसको ही मिलती है …….
छोड निराशा, अश्रु पौंछ लो, मत रिसते ये जख्म दिखाओ,
क्षमता,साहस,विवेक,शक्ति से, एक नया इतिहास रचाओ,
कोई विजेता, असफलता से, कभी नहीं टूटा करता है ।
मंजिल उसको ही मिलती है ………
करो हार का विश्लेषण, विकल्प निरन्तर नये चुनो तुम,
नई ऊर्जा पुनः संजो कर, नये जीत के स्वप्न बुनो तुम,
ईश्वर देख के दृढता, क्षमता, विजय श्री अर्पित करता है ।
मंजिल उसको ही मिलती है ………
चलती धडकन, सांसों को फिर, आस, उमंगें नयी मिलेंगी,
मन उपवन में मधुर गन्ध ले, फिरसे कलियां बहुत खिलेंगी,
असफलता से, नये सृजन का, स्वप्न नहीं रूठा करता है ।
मंजिल उसको ही मिलती है ………