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खा लिया, पी लिया, जी लिया हर पल यहाँ का !
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

अच्छी खासी, भली दुनियां, कैद सी लगने लगी है,
अब नित नये दुख दर्द से, साँस तक घुटने लगी है,
उस स्वर्गसुख की लालसा, मुझको इतनी बढ़ गई है,
काटने को दौड़ता है,अब, हर महासुख भी यहाँ का ।
मैं बहुत उत्सुक, कि जल्दी से मिले न्यौता वहां का !
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

यह हमारा सोच ही है, जो हमें हर पल डराता,
व्यर्थ के भ्रम, धारणाओं में फसा, बुजदिल बनाता,
मौत के बारे में गर हम, सोच, ‘माइंड सेट’ बदलें,
दुख,दर्द, डर,गम सब, अनंत सुख खुशियों में बदलें ।
मौत से डर डर के जीना, दस्तूर क्यूँ है इस जहाँ का ?
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

कौन जाने, शब्द मेरे, मौत के कुछ भ्रम मिटा दें,
मृत्युभय को छोड़ कर, लोग हँसलें, खिलखिलालें,
बहुत सम्भव वहां बिछड़े, सभी लोगों से मिला दें,
क्यूँ नकारात्मक सोच है, मौत के बारे में जग का ?
पर खुशनुमा निश्चित मिलेगा, सबको आलम ही वहां का !
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

हम ने देखा एक पहलू, और बना लीं धारणाएं,
किसने देखा मौत के संग, कष्ट होते, आपदाएं ?
जर्जर हुए तन और मन से, मौत ही तो मुक्ति देती,
नया तन मन हमें देकर, नव ऊर्जा, नव शक्ति देती ।
फिर मौत को बदनाम करना, क्यूँ हुआ मकसद जहाँ का ?
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

बहुत संभव, सोचता जग, वही सब सम्पूर्ण सच हो,
जो भी यहाँ मैंने कहा, ऐसा वहां कुछ भी न सच हो,
सोच ‘पॉजिटिव’ जो होगा, तो व्यर्थ का न कष्ट होगा,
शेष सांसों पर नहीं कोई, डर, मौत चिंता बोझ होगा ।
गुलजार अंतिम सफ़र होगा,इस सोच से हर किसी का !
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

यह देवताओं की धरा है, एक अनुपम प्रयोगशाला,
हम सभी “ ट्रेनी “ यहाँ पे, सारी दुनियां पाठशाला,
सुविधापरक, खूबसूरत और जो इसे सुखकर बनाते,
उस को सृष्टि के रचेता शीघ्र, स्वर्ग में वापस बुलाते ।
यूँ सुख, सुविधा सम्पन्न, स्वर्ग बन पाया वहां का !

खा लिया, पी लिया, जी लिया हर पल यहाँ का !
मौत देती है निमन्त्रण, स्वर्ग जैसे उस जहाँ का !!

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