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जर्जर हुए तन और मन से, जी सकेगा कौन फिर,
तन राख से कैसे करे कोई, नीड का निर्माण फिर।
तन राख से कैसे करे कोई …..

बे वफा बन कर गई तू, परमात्मा से मिलन को,
छोड़ क्यों मुझको दिया तुमने अकेला रुदन को?
बेवफा औरत प्रमाणित, कर दिया एक बार फिर ।
तन राख से कैसे करे कोई …..

याद की उन अस्थियों को, लेकर हृदय के कलश में,
शमशान, गंगा राह दूभर, जर्जर हैं पग और विवश मैं,
‘क्या खता मुझसे हुई’, मन सालती रही बात फिर ।
तन राख से कैसे करे कोई …..

तन राख में, मैं ढूंढता हूं, रूह वो मेरी कहाँ है ?
मेरी जिंदगी लौटा मुझे, प्रभू छुप बैठा कहाँ है ?,
या उठा ले तू मुझे भी, चन्द घण्टों बाद फिर ।
तन राख से कैसे करे कोई …..

मैंने सोचा था यही, उन अस्थियों और राख से,
निर्माण करके देख लूं, पूरी साधना विश्वास से,
"मुक्ति मिलेगी ना उसे", सोचा यही था यार फिर ।
तन राख से कैसे करे कोई …..

यूँ अस्थियों और राख को, मैंने विसर्जित कर दिया,
पर क्या करूं तेरी याद ने, दुश्वार जीवन कर दिया,
नयना कलश देते रहे हैं, अश्रु निर्झर धार फिर ।
तन राख से कैसे करे कोई …..

ना उमंगें, ना तरंगें, अब सांस भी एक बोझ है,
दिल धड़कनों में थकान है, न ऊर्जा का ओज है,
है कसम मुझको उठा ले, भेज उसके पास फिर।
तन राख से कैसे करे कोई …..

जर्जर हुए तन और मन से, जी सकेगा कौन फिर,
तन राख से कैसे करे कोई, नीड का निर्माण फिर।

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