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मेरे बडे पुत्र को, अपने एम् बी ए करने के दौरान ही कैम्पस रेक्रुइट्मेंट में, मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब मिल गई थी और पूरा करने के बाद उसे सोनी के प्रोजेक्ट पर जापान भेज दिया गया जहाँ से वह हर तीसरे माह कंपनी के खर्चे पर ही 8-10 दिन के लिए इंडिया आता था और वहां से अच्छे डेकोरेशन आइटम लाता था जिस में एक बार जापान से बहुत ही प्यारी गुड़िया लाया तब मैंने यह कविता 2002 में लिखी थी। अब वो अमेरिका में उसी कंपनी में वाईस प्रेजिडेंट है।

बेटा तू जापान में, घूम खूब आराम में,

ऐसे मौके कम आते, विश्व भ्रमण जो करवाते,
कंजूसी मत तुम करना, पेट सदां अपना भरना,
वैज सदां खाना खाना, जाम कभी मत अपनाना,
जापानी गुडिया जितनी, चाहो उतनी ले आना,
पर जापानी गुडिया सी, बहू कहीं मत ले आना ।
पर जापानी गुडिया सी, बहू कहीं मत ले आना !!
परियों सी लगतीं छोरीं, देह बहुत उनकी गोरी,
आंखों में चंचलता है, जिस के लिए मचलता है,
भोली भाली दिखतीं हैं, चुपड़ी बातें करतीं हैं,
उनकी बोली सरगम सी, शायद तुझको लगतीं हैं,
आकर्षण है प्यार नहीं, त्याग और विश्वास नहीं,
ये सब बातें हैं सच्ची, झूठ नहीं इस में कुछ भी,
संस्कार कैसे उन के, खान पान कैसे उन के,
और वफ़ा उनमे कितनी, ये तू कहाँ समझता है ।
वहां किसी चिंकी के संग, रस्ता भटक नहीं जाना !
पर जापानी गुडिया सी, बहू कहीं मत ले आना !
पर जापानी गुडिया सी, बहू कहीं मत ले आना !!
( जापान में लड़की को चिंकी कहते हैं। )

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