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“कुछ देर को करुणा निधान, कृपा इतनी कीजिये,
अर्धांगिनी आराध्य के दोनों कान बहरे कीजिये,
ये है जरूरी इसलिये, यदि बात वो अपनी सुने,
खाना हमें देगी नहीं, पर रुई सा निश्चित धुने।”
ॐ शान्ति ! ॐ शान्ति !! ॐ शान्ति!!!
का से कहूँ मैं जी की बात, हमारी बा ने, बहुत सतायो रे,
मारी गई थी मति म्हारी, ब्याह जो जा से रचायो रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
सुबह उठूँ घर झाडू बुहारूं, सेजसे उठवे की राह निहारूं,
चाय भई तैयार उठो रानी, चाय डकारो रे ।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
चौका बासन मैं करवाऊं, कपडा लत्ता मैं धुलवाऊं,
खड़ी खड़ी मधुराय, हाथ नाहिं मेरो बटावे रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
आटा माडूं, साग कटाऊं, संग बैठ रोटी सिकवाऊं,
मारो तो अब तक नाय, रोज पर बेलन दिखावे रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
खुद कूं समझे स्वर्ग अप्सरा, डरे बहुत जब जाऊं दफ्तरा,
संग वहां सुन्दर नार, सौतिया ढाह सतावे रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
दफ्तर से घर वापस आऊं, सेज पड़ी देखूं घबराऊं,
थकी तेरे घर आय, काम को बोझ बतावे रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
हाडे टूटे गोडे टूटे, कहती राजा मर गई तो ते,
पानी गरम कर लाओ और पायं मेरे सिकवाओ रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
वा के मन की राम ही जाने, कछु लाऊं तो देती ताने,
लायो ने हार हमेल, बलम तोसे नैक ना बोलूं रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
मन ही मन में झल्लाऊं, मजबूरी में पाय दबाऊं,
जी में आवे, पायं छोड़ के, गलो दबाऊं रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
कहाँ जाय के रपट लिखाऊं, घायल दिल को हाल दिखाऊं,
सब मर्दन को हाल यही, जिया काहे दुखावे रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
सब मर्दन की एक सी बतियां, दुख के दिन पर सुख की रतियाँ,
कह लई अपने मन की, राम अब मोय बचइयो रे।
का से कहूँ मैं जी की बात.......
सांझ भई खुद सजे सजावे, पटरानी से नजर वो आवे,
छुई मुई भई जात, तनिक हो हाथ लगायो रे।
कैसे कहूँ मैं कछु आगे, निगोड़ी मोहे बहुत सुहावे रे!
कह ना सकूं कछु आगे, निगोड़ी मोय, बहुत सुहावे रे!
धन्य हमारो भाग्य, ब्याह जो जा से रचायो रे!
धन्य हमारो भाग्य, ब्याह जो जा से रचायो रे!!
धन्य हमारो भाग्य, ब्याह जो जा से रचायो रे!!!