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कल देखा, एक मित्र के, हाथ में, लगी हुई है चोट,
पूँछा - 'कहाँ, कब, किस तरह, लगी आपको चोट ?'
अपने मित्र ने, इधर, उधर, हर ओर निहारा,
अश्रु बांध टूटा और बोला- “हमें पत्नी ने मारा,
आज, चाय देर से बनी, यही था दोष हमारा,
बस इसी बात पर, उठा, फैंक कर बेलन मारा,
अरे खैर इतनी बस हुई, उठाया नहीं दुबारा,
अगर उठाती पुनः, सुजा देती तन सारा ।”
"अरे मित्र ! ये घर की बातें , नहीं सड़क पर कहते,
तुम इकले ही नहीं हो, सभी पत्नी के जुल्म हैं सहते,
माना हम ने, बात आप की, है शत प्रतिशत सच्ची,
इतना रखो ध्यान, अब नहीं आपकी उम्र है कच्ची । ”
"सत्य कहूँ घर लौटा, ख़ुशी से आँखें भीगीं सच्ची,
भाभी जी से बेहतर, अपनी घरवाली ही अच्छी,
अपनी "करुणा की देवी", रौद्ररूप तो रोज दिखाती,
नहीं मारती कभी, पर चिमटा,बेलन रोज दिखाती ।"
हे पाठक ! रख याद, है पत्नी, घर की इज्जत, गहना,
गुस्ताखी होगी, शान में उसकी, उल्टा सीधा कहना,
धन्यवाद ईश्वर का करता, है अपनी ही लाखों में एक,
सर्वोत्तम है मौन साधके, शान्त कर, पत्नी का आवेश ।
मित्रों ! अगर समझते ठीक, बात यह मेरी मानो -
"जो जैसी मिल गई, उसी के संग निभा लो,
मनमाफिक बन जाय, स्वप्न मत ऐसे पालो ।"