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भगवान् कसम,
आज भी हम उस पल को कोसते हैं,
जिस पल अनायास ही,
गलती से,
अपनी एकलौती प्राण प्यारी पत्नी की,
झील सी गहरी आँखों में,
प्यार से लगे झांकने,
तुरन्त दूना प्यारे जताते हुए बोलीं -
"प्रिये ! आज आपको क्या हो गया है,
तबियत तो ठीक है ?
सच सच बताओ,
हमारी आँखों में,
क्या लगे ताकने और आंकने ?
हाथ धोकर हमारे पीछे पड गईं 
तुम्हें हमारी कसम,
सच सच बताओ,
हमारी इन झील से आँखों में,
आपको क्या क्या नजर आता है ?”
हमारा दिल अत्यन्त घबराया,
भयानक खतरा नजर आया,
लेकिन उनके अप्रत्याशित अगाध,
प्रेमपूर्ण व्यवहार ने थोड़ा ढांढस बंधाया,
एक बार पुनः,
उनकी आँखों में झांका और फ़रमाया 
" प्रिये ! हमें तो इन में,
एक प्यारा अपना सा,
थोड़ा हमशक्ल,
छैलछबीला नजर आता है। "

मनमाफिक जबाब ना मिलने से,
उन का पारा थोड़ा,
आसमान पर चढ़ गया,
और हमारे सोच का कारवां,
जहाँ का तहाँ थम गया,
लगा हमारी धड़कन,
अब रुकी तब रुकी,
क्योंकि - हमारी पतली सी गर्दन,
उनकी दोधारी नज़रों के बीच थी फसी।
हम ठहरे एक बेवश लाचार अनाडी,
लेकिन वो हैं प्यार के खेल की,
सबसे शातिर, अनुभवी खिलाडी।

अब उन्होंने अपना,
हिटलर शाही अन्दाज छुपाया,
बार बार वही प्रश्न दुहराया,
हमने भी सावधान होकर,
वही जबाब दोहराया।
लेकिन पुनः
अप्रत्याशित मुस्कान के साथ बोलीं -
" मेरे प्यारे प्यारे सोना,
(मन ही मन बुदबुदाई - क्यूँ चाहते हो अपना चैन औ' सकूँ खोना ?)
मेरी इन आँखों में अच्छी तरह डूब के देखो,
झूठ मत बोलो,
सच सच बताओ क्या क्या नजर आता है ?”
हमने कहा -
इसके अतिरिक्त हमें तो,
कुछ भी नजर नहीं आता है।

बोलीं- “जरा मेरे पास तो आना,
पलकें झपकाना,
कमाल है, आँखें तो ठीक हैं,
एक बार फिर,
आँखें बन्द कर के नहीं
खोल के डुबो,
मेरी आँखों में क्या क्या छुपा है,
जरा अच्छी तरह ढूंढो।
मैं आपको अच्छी तरह जानती हूँ,
तुम्हारी रग रग को पहचानती हूँ,
बहुत चालू हो,
चलते पुर्जे हो,
मुझे बेबकूफ बनाते हो,
वैसे सामने वाली बिल्डिंग में,
दूर खड़ी महिला की नजरें भांप जाते हो।”

हम उनके जाल में,
बुरी तरह फस चुके थे,
बेवश से खड़े थे,
कड़क आवाज में आदेश दिया -
“ फिर से अच्छी तरह देखो !“
हम भी अपना आपा खो चुके थे,
हमने भी असफल पतियों वाला रौब दिखाया -
बोले -
"हमें इसके अतिरिक्त,
कुछ नहीं दिखता,
तुम्हारी आँखों में भरी है -
केवल और केवल,
बदबूदार कीचड गाढ़ी गाढ़ी।"

बोलीं - “ तुम तो इस खेल में बच्चा हो,
खा गए फिर से गच्चा हो,
मेरी आँखों में तैर रहे है,
पड़ोसन के,
सुन्दर जेवर, और सुन्दर साडी,
मुझे पागल बनाते हो,
पलकें बन्द करके डुबकियां लगाते हो,
और बताते हो भरी है कीचड गाढ़ी। “

“ चलो, ज्यादा होशियार मत बनो,
यहाँ खड़े मत रहो,
जाओ जल्दी तैय्यार होकर,
निकालो गाडी,
बहुत बनते हो स्मार्ट,
भूल मत जाना लेना संग में,
अपना क्रेडिट कार्ड,
मुझे लेकर आने हैं -
पड़ोसन से अच्छे,
तनिष्क के डायमंड के जेवर,
और मॉल से मीनाक्षी की दो चार साडी। “

“ अरे मेरा क्या है,
घर में तो जैसे चाहोगे,
वैसे रह लूंगी,
लेकिन मुझे तो बस,
तुम्हारी इज्जत की चिन्ता है,
तुम्हारी पत्नी जो हूँ,
कॉलोनी में तुम्हारी इज्जत,
कम थोड़े ही होने दूँगी। “

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