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गत मीटिंग की बात बताएं,
चुपके से एक भाभी बोलीं-
"भैया!
हाव भाव चेहरे से लगता,
भाभी से काफी डरते हो,
फिर भी भाभी पर कटाक्ष की,
कैसे तुम हिम्मत करते हो?”

सोचा-
प्रश्न बहुत उनका अच्छा है,
शत प्रतिशत देखो सच्चा है,
क्योकि पत्नी के सम्मुख तो,
पति कुछ बोल नहीं पाते हैं,
पर कविता में खुल्लम खुल्ला,
व्यंग वाण ही बरसाते हैं,
इतनी हिम्मत, इतना साहस,
क्या गोली खाकर पाते हैं,
जो भरी सभा में, बिना डरे ही,
सब कुछ मन की कह जाते हैं।
सत्य यही पति, पत्नी पीछे,
डींग मारते दिख जाते हैं,
पर पत्नी के आते ही सब,
भीगी बिल्ली बन जाते हैं।

भाभीजी से मिली प्रेरणा,
मन में जाग्रत हुई चेतना,
शोध करूँ इस पर यह ठानी,
घर में पढ़ डाली जिनवाणी,
फिर भी मन था अटका अटका,
मंदिर, मस्जिद तब मैं भटका,
धर्म, शस्त्र सब वेद, पुराण,
गीता, बाइबिल और कुरान,
तभी पढ़े, गुरु ग्रन्थ साहब,
पर उत्तर ढूंढ ना पाए सा’ब।

यद्यपि याद आ गई नानी,
फिर भी मैंने हार ना मानी,
रोज नए सन्दर्भ था लिखता,
ढूंढ रात भर उनको पढता,
व्यथित बहुत था, और व्यस्त भी,
असफलता से बहुत पस्त भी।
मेरी बातों से तंग आई,
तब पत्नी एक दिन गुर्राई,
“ना सोते सोने देते हो,
क्या पढ़ते, लिखते रहते हो?,
कहो रात में छिप छिप कर ही,
किसको लव लैटर लिखते हो?”

सुन कर ऐसे आरोपों को,
मेरी आँखें थीं भर आयीं,
पर डरते डरते ही मैंने,
अपनी दुविधायें बतलायीं।
बड़े प्यार से हँस कर बोली-
“बुद्धू पहले क्यूँ यह बात ना बोली,
बात बहुत यह तो छोटी है,
पर अक्ल जरा तेरी मोटी है,
झूठ नहीं चल सत्य बताती,
इसके कारण तुझे गिनाती-

- 1 -
वहां सभी बैठे पति कायर,
पत्नी उनकी जनरल डायर,
उनकी जिव्हा पर हैं ताले,
वैसे बनते हैं घरवाले,
कहने पर शायद पिटते हों,
इसीलिए मन के घुटते हों,
संविधान में सबको दी है,
मन की कहने की आजादी,
पर वो देशद्रोहिणी नारी,
जिनने पति की यह आजादी मारी।”

- 2 -
“मैं इज्जत संविधान की करती,
नहीं किसी से बिलकुल डरती,
हूँ आखिर तेरी घरवाली,
दी तुम को कहने की आजादी।”

- 3 -
“ देकर तुम को यह आजादी,
दूर दर्शिता ही दिखलाती,
आने वाली हर आफत से,
मैं खुद अपनी जान बचाती,
चिन्ता, कुण्ठा मिटे तनाव,
स्वस्थ रहेंगे मेरे जनाब,
ब्लड प्रेसर, दिल की बीमारी,
दूर रहेंगी इन से सारी,
जो मन की कुण्ठा कहता है,
वही ठीक चंगा रहता।.”

- 4 -
"सच्चाई सुनने ही हिम्मत,
बोलो कितनों में होती है,
तेरी बीबी इन बातों से,
विचलित कभी नहीं होती है,
जब महफ़िल में तुम कहते हो,
कैसे कैसे दुख सहते हो,
ऐसा तू इकला होता है,
जिसपर मुझको गर्व होता है,
सच तुम दिल के कितने सच्चे,
मुझे बहुत लगते हो अच्छे।”

मैं भी बात कहूँ एक सच्ची-
हास्य कवि की बीबी अच्छी,
बात कहूँ मैं दिल की सच्ची-
" मेरी बीबी सबसे अच्छी!"
" मेरी बीबी सबसे अच्छी!!"
" मेरी बीबी सबसे अच्छी!!!"

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