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प्रस्तावना

हम पूजे कितने देवी, देवता, जीवन भर पर्यन्त,

पतिओं के सन्ताप का, फिर भी हुआ न अन्त।


नित, हर देवी, देवता, आराध्य, पूजे विधि विधान,

लेकिन पति को, कभी मिला ना, पत्नी से सम्मान।


हर पति ने सामर्थ्य भर, लगाये बहुत कयास,

जुल्म पड़ें न झेलने, उम्रभर करते रहे प्रयास।


क्या सारे देवी, देवता, हो गए निष्क्रिय, व्यर्थ ?

क्यों प्रतिदिन बढ़ते रहे, पत्नी अन्याय, अनर्थ ?


तिहुँलोक में,सब पत्नी पीड़ित, यत्र, तत्र, सर्वत्र,

शायद हासिल हो सकें, कुछ खुशियों के सत्र।


विकट समस्या ही रही, और बीती उम्र तमाम,

श्रद्धा से पत्नी पूजा करके, आया कुछ आराम।


उचित लगे तो आप भी, इसको खुद अपनायें,

और जो अनुभव हों आपके,जल्दी हमें बतायें।


निस्वार्थ, निशुल्क, परमार्थ में, रहे आपको भेज,

कल्याण सभी का हो सके, सुनिश्चित करे प्रत्येक।


जान लिया, इस जन्म में, ये वैवाहिक सुख मर्म,

अब जन्म जन्म अपनाऊंगा, ये सच्चा पत्नी धर्म।


पत्नी पूजा प्रारम्भ


यही अरदास, रहो मम पास, हरो अकुलाहट, पीर हमारी,

जीवन सतरंग, तेरे ही संग, है सुख पर्याय, ये प्राणन प्यारी,

अलौकिक नूर, तू ही मेरी हूर, रहे मत दूर, आ ढिंग बैठ हमारी,

पूजा, अर्चन स्वीकार करो मम, तुम जन्म जन्म आराध्य हमारी ।

तिष्टहू , तिष्टहू, तिष्टहू प्यारी !

तिष्टहू , तिष्टहू, तिष्टहू प्यारी !!


पत्नी सेवा दिन रात, जो पति नित्य करें,

मन में रख श्रध्दा भाव, नित साष्टांग करें,

उन के तन मन संताप, क्षण में कट जावें,

स्वादिष्ट नये पकवान, वो प्रतिदिन पावें ।


पत्नी महिमा गुणगान, जो पति गावत हैं,

उनकी किस्मत के द्वार, सच खुल जावत हैं ।

पत्नी सेवा दिन रात, जो पति नित्य करें,

मन में रख श्रध्दा भाव, नित साष्टांग करें !


हफ्ते में पिक्चर एक, जो तू दिखलावे,

तेरी इच्छा भरपूर होवें, हर पल सुख पावे ।

पत्नी सेवा दिन रात, जो पति नित्य करें,

मन में रख श्रध्दा भाव , नित साष्टांग करें ।


मन भाये हार हमेल, जो दिलवावत हैं,

पत्नी को निश्छल प्यार, वो पति पावत हैं ।

पत्नी सेवा दिन रात, जो पति नित्य करें,

मन में रख श्रध्दा भाव , नित साष्टांग करें !


घर के कामन में मर्द, हाथ बटावें जो,

उन कौ निश्चित कल्याण, होगा जानें वो ।

पत्नी सेवा दिन रात, जो पति नित्य करें,

मन में रख श्रध्दा भाव , नित साष्टांग करें !


पत्नी से संग्राम का, कहीं नहीं उल्लेख,

ईश्वर तक इनसे डरें, न हम व्यक्ति विशेष ।


बोल्यो जब बाको भ्रात, मिलवे कूं आयो,

“अपनी बहना ले जाओ, मैं तो भर पायो”,

साले के यह थे बोल - ”जीजा सठियायो,

वापस लै जाऊं, जाय, मैं नाय पगलायो ! “


जो गलती हम कर चुके, नहीं उसका कोई तोड़,

अपनी इल्लत छोड़ कर, चले गए मुंह मोड़ ।


ऊॅ हीं चामुंडायनूं तनिष्क के डायमंड, स्वर्ण आभूषणादि, षठ डिजाइनर परिधानम् समर्पणयामि स्वाहा !


चन्दन, बादाम, गुलाब, केसर संग घिसे,

चिकने पत्थर पर रोज, घंटों खूब पिसे,

मल मल उबटन हर रोज, मुखड़ा दमकावे,

जा दिन मैं पीसूं ना, मोकुं धमकावे ।


पत्नी के सम्मुख नहीं, चलें नियम कानून,

लाख भले बनता फिरे कोई अफलातून ।


ऊॅ हीं गृहदुर्गायनूं विश्व विख्यात L'oreal के समस्त सौन्दर्य प्रसाधनम्, कलर आदि समर्पणयामि स्वाहा !


सुन कर बाकी धमकी, अंसुयन नीर भरे,

पीछे पीछे डोलूं, कापूं डरे डरे,

कर वद्ध करूँ विनती- "मोकुं माफ़ करो,

मेरे अवगुण ना आप, अपने चित्त धरो ।"


मैं तो तुच्छ इंसान हूँ, आप हैं पूज्य महान,

क्षमा हमें कर दीजिये, देकर मधु मुस्कान ।


ऊं हीं गृहभूतनी नीं शान्ति वास्ते विश्व भ्रमण के टिकट, पांच सितारा होटल के बुकिंग आदि समर्पणयामि स्वाहा !


जय माला

'पत्नी कृपा अपार है', यह सत्य करो स्वीकार,

नत मस्तक हो व्यक्त कर, पत्नी का आभार ।


पत्नी में सम्पूर्ण समाहित, हर देवी के गुण, रूप,

मेहरबान हो जाये पत्नी,चाहे पति हो रंक या भूप।


पत्नी में सम्पूर्ण समाहित, हर देवी का अवतार,

नौ विशिष्ट दैवीय शक्ति का, छुपा हुआ भण्डार ।


निसंदेह पत्नी सेवा ही, बड़े पुण्य का काम,

निर्विघ्न तेरे बनते जायेंगे, जग में सारे काम ।


सुन्दरता गुणगान कर, जब जब सम्मुख आय,

वैवाहिक सुख मूलमन्त्र ये, सबको दिया बताय।


नौ दिन देवी, पूजो न पूजो, पड़ता फ़र्क़ नहीं है,

पत्नी पग, प्रतिदिन पूजा कर, तेरा स्वर्ग यहीं है ।


इत्याशीर्वाद

गलती तू करता सदां, पत्नी की कभी नांय,
आशीर्वाद खुद मांग ले, छू कर बाके पांय ।


सन्देश

यदि तुमको मंजूर हो, घर बने रहें सुखधाम,
तो घर घर तक पहुंचाइए, पत्नी पूजा पैगाम ।

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