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फूलों से भरी अपनी बगिया, जहाँ तरह तरह के फूल खिले,
अपनी प्यारी इस धरती को, कुदरत के बहुत उपहार मिले।
फूलों से भरी अपनी बगिया…

इस उत्तर से उस दक्षिण तक, इस पूरब से उस पश्चिम तक,
है बहुत विविधता माटी में, इस कोने से उस कोने तक,
मरुथल, जंगल, नदियां, झीलें, हिम मंडित पर्वतराज मिले।
फूलों से भरी अपनी बगिया…

जलवायु, माटी, पानी से, पग पग पर फिजां बदलती है,
बेला, गुलाब, जूही, चम्पा, फूलों की क्यारी मिलती है,
है उपवन बहुत बड़ा अपना, पर केसर घाटी लघु एक मिले।
फूलों से भरी अपनी बगिय...

रंग, ढंग, सौरभ हैं भिन्न भिन्न, फिर भी संग उपवन में रहते,
गुणगान कर रहे युग युग से, बहती नदियां, झरने बहते,
मानव मन को फिर बतलाओ, नफरत के कहाँ से बीज मिले ?
फूलों से भरी अपनी बगिया…

हैं बहु भाषाएँ भिन्न भिन्न, और रहन सहन भी अलग अलग,
हैं एक सूत्र में बंधे सभी, है नहीं कहीं कोई अलग थलग,
हम हिन्दुस्तानी लोगों में, अपने पन की पहचान मिले।

फूलों से भरी अपनी बगिया, जहाँ तरह तरह के फूल खिले,
अपनी प्यारी इस धरती को, कुदरत के बहुत उपहार मिले। 

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