“बहुत दिनों से देख रहा था, पृथ्वी माँ थी बहुत उदास,
मैंने पूंछा- मुझे बताओ, क्यों उदास हो, क्या है बात ?
अपने मन की बात कभी भी, मुझको माँ ने नहीं बताई,
मैं जिद कर बैठा बतलाओ, मैंने अपनी कसम खिलाई।”
रोकर बोली, ‘चांद भाई को, न राखी बांधी, न भिजवाई,
युग युग से मुझे साल रही है, भइया की वह सूनी कलाई।’
मैंने, ‘इसरो’ वैज्ञानिक पापा को, मम्मी की ये बात बताई,
बोले- ‘ मुझको तो, तेरी माँ ने, कभी नहीं यह बात बताई,
माना थोड़ा तो मुश्किल पर, नहीं असंभव यह कर पाना,
माँ को बोलो, कुछ दिन ठहरो, खुद बाँध के राखी आना।’
“पापा, सबसे पहले मुझे भेजो, राखी ले कर उनसे मिलने,
मैं, मामा से मिलकर आऊं, चाहा लाखों बार मेरे दिल ने,
जा कर देखूं दो दिन रुकना, आसान है या होगा मुश्किल।"
‘ ठीक है, फोटो भेजना, खबरें देना, तुम मुझको पल पल,
छोड़ बचपना, जिम्मेदारी पूर्ण निभाना, न करना तुम छल। ‘
मैं, माँ से बोला- " मामा के लिए राखी देदो, मैं जाऊँगा कल। "
‘ जल्दी से जल्दी मुझे बताना, वहां जीने के, क्या हैं साधन ?
क्या क्या ले जाना होगा, और वहां चाहिए क्या कोई वाहन ?
कैसी गर्मी, सर्दी, ऑक्सीजन, क्या खाने को, कहाँ है पानी ?
ये सब बातें पता लगाकर, मुझे बताना, मत करना नादानी।
पापा ने समझाया मुझको, ‘ लाखों मील दूर है मामा का घर,
तुम्हें ना जाने कितने, अंजाने खतरे, बाधाएँ भी मिलें वहां पर,
वहां पहुँच के, सबसे पहले, उपरोक्त सभी कामों को करना,
बिना डरे ही सब निर्देशों का, तुम शतप्रतिशत पालन करना,
अरे देखना एक दिन मैं तेरी माँ को भी, भाई से मिलने भेजूंगा,
भाई बहन के महा मिलन को, दुनियां के संग, खुद भी देखूंगा!’
तब पापा ने पहले राकेट से मुझे, पृथ्वी की कक्षा में था भेजा,
फिर विक्रम लेंडर के संग, धीरे से चाँद की कक्षा में था ठेला,
अपलक मुझे रहे देखते, होने ना दिया, एक पल भी ओझल,
डरते थे ये लापरवाह है और, कुछ ज्यादा ही नटखट, चंचल!
अन्तरिक्ष का अतिदुर्लभ, अद्भुत, मनहारी हर दृश्य दिखाया,
मैंने भी मामा से मिलने की जल्दी, ना उतावलापन दिखलाया,
पापा ने धीरे धीरे, घुमा, घुमा कर, मामा के घर तक था भेजा,
मुझे पूर्ण सुरक्षित रखना सर्वोपरि था, रिस्क नहीं था कोई लेना।
बड़े अदब से, मैं पेश आया, वहां भारतीय संस्कार दिखाया,
छूकर मामा के पैरों को, फिर मैंने अपना परिचय बतलाया -
“आपकी बहन, पृथ्वी का बेटा, प्रज्ञान नाम, आया हूँ मिलने,
दूर से आपको देख देख कर, लाखों बार उकसाया दिल ने।“
भावुक हो, अश्रु भरे नयन से, मामा ने मुझको गले लगाया,
उनके अपनत्व, प्यार के महा सिन्धु की, थाह नहीं मैं पाया,
भाव विव्हल होकर, मामा ने पूंछा - “कैसी है मेरी पृथ्वी बहना?
बहुत याद करती हैं आपको, कभी रोक न पाए आसूं बहना,
फिर मैंने उनको बतलाया - “ मामा, माँ ने भिजवाई है राखी,
भावुक हो कर लगे वह रोने, मैं यह बात, बता रहा हूँ सांची !”
' दूर से आये, थके होगे, खा ओ, पी ओ, कर लो कुछ आराम,'
"आराम कहाँ, पापा ने मुझे दिया है, पूरा चौदह दिन का काम,
यहाँ बहुत परीक्षण करने मैंने, चाहिए बस आपकी परमीशन,
जिससे आपकी पृथ्वी बहना, आ पाये बिना लिए कोई टेन्शन।
यहाँ कहाँ मिलेगा पानी उन को, और कहाँ मिले ऑक्सीजन,
डर है, माँ का कहीं न निकले, बिन पानी, ऑक्सीजन के दम,
आप से मिलने, माँ बहुत हैं व्याकुल, यूँ जल्दी लेना है एक्शन,
मेरे पापा का भी यही टेंशन, पर यही स्वप्न और यही है पैशन।"
मामा बोले - 'अगली बार, भान्जी व्योममित्र को संग लाना,
उस को भी अपने मामा का, छोटा सा यह घर दिखलाना।'
"संग तो उसको ले आऊंगा, पर बहुत बोर यहाँ वह होगी,
क्योंकि उसके साथ यहाँ पर, ना कोई सखी सहेली होगी,
वह मुझको परेशान करेगी, मुझे काम कोई करने न देगी,
और खूब बहाने ढूंढ ढूंढ कर, कभी लड़ेगी, कभी भिड़ेगी।
अब मैं और पापा, व्योम मित्र को, मिल कर ऐसा ट्रेण्ड करेंगे,
जिस से चाँद की हलचल के संकेत, चित्र, पृथ्वी पर ही मिलेंगे,
फिर व्योम मित्र को, आप की बहना, के साथ ही यहाँ भेजेंगे,
उन संकेतों, चित्रों के विश्लेषण से, हम कुछ ऐसा प्लान करेंगे -
जिस से पृथ्वी पर रहने वाले भी, चांद पर आ कर खूब बसें,
और पृथ्वी के भारत से चाँद तक, नियमित राकेट रोज चलें,
फिर तो आप की प्यारी बहन, खुद जब चाहेगी, तब आयेगी,
कभी बुलाकर आपको घर, नित नए व्यंजन खूब खिलायेगी।"
‘इसरो’ ने ही करा दिया है, प्रज्ञान - चांद का महा मिलन,
अब भारत माँ के जयकारों से, गूँज रहा अन्तरिक्ष, गगन!
अब मामा से ले परमीशन, प्रज्ञान घूम रहा है वहां चाँद पर,
बहुत तरह के किये परीक्षण, ले फोटो, भेज रहा धरती पर,
गहरी नींद में सोया थक कर, नहीं अब तलक ली अंगड़ाई,
पापा जी, मत छेड़ो उसको, सो लेने दो, बहुत थका है भाई।
चौबीस रात दिन सोकर जागा, “पापा, रात बहुत ठंडी थी भाई,
अब पुनः काम पर मैं लगता हूँ,” बोला ले कर फिर अंगड़ाई।
चाँद के दक्षिणी ध्रुव का भारत, इकलौता हक़दार बन गया,
चाँद के कितने गूढ़ रहस्यों पर, पड़ा था पर्दा, दूर उड़ गया,
अभी न जाने राज अनोखे, कितनी बातें, चाँद की हैं अन्जानी,
इसरो- प्रज्ञान के समेकित प्रयास से, सारी पर्तें ही खुल जानी।
चन्द्रयान-3 के सफल मिशन से, भारत की क्या साख बढ़ी है,
देख कर, दुनियां के सब देश, हैरान हैं, सब की नींद उडी है,
" इसरो " की इस उपलब्धि पर, भारत का जन जन गर्वित है,
और इस में भी, 'वसुधैव कुटुंबकम' का, महाभाव गर्भित है।
देखो किसी विदेशी तकनीक के, हम नहीं रहे मोहताज,
केवल हम हैं, चांद के दक्षिणी ध्रुव के, इकलौते सरताज,
तेईस अगस्त तेईस को, अन्तरिक्ष में, रचा नया इतिहास,
अब 'इसरो टीम' के हर व्यक्ति पर, हम सब को है नाज।
सबसे सस्ता, सम्पूर्ण स्वदेशी,अपना मिशन चन्द्रयान तीन,
हतप्रभ रह गए, रूस, अमेरिका और निकट पडोसी चीन,
दो सितम्बर तेईस को, 'इसरो' ने भेजा है, पहला सूर्य यान,
अपनी प्रतिभा, क्षमता ने, सिद्ध कर दिया, भारतवर्ष महान,
भारत के अन्तरिक्ष मिशन का, हो गया मार्ग प्रशस्त, शुरू,
अन्तरिक्ष के क्षेत्र का भारत, निश्चित बन गया " विश्व गुरू "।