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क्यूँ रहे ठूंसते, मम जहन में, अपनी इच्छाओं के कौर ?
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

अपने कोरे मन कागज़ पर, लिखने में थे वह तल्लीन,
‘इन्जीनियर, डाक्टर बनना’, हर पल सुनते थे ये बीन,
मात पिता की आज्ञा पालन, करने वाला था वह दौर ।|
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

अब सामाजिक प्रति स्पर्धा में, पागल रहते, मात पिता,
न जानें, बच्चों के मन में, किन अरमानों की जले चिता,
अब नितान्त आवश्यक है, हम बदलें सोच, तरीके, तौर ।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

विनती है, कोई मात पिता, बच्चों का बचपन ना छीने,
रोपो ज्ञानार्जन जिज्ञाषा, बस उन को दो सुख से जीने,
ताकि उनके तन, मन, दिल में, लदी रहें खुशियों की बौर ।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

हर बच्चे में प्रतिभा, क्षमता, होती है कुछ खास विलक्षण,
यह पहचानो, हेल्प करो, देख के उन के क्षमता, लक्षण,
पर उनकी चाहत नावों के, हम मार्गदर्शक ही रहें बतौर !
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

संघर्षों संग रहना सीखेंगे, असफलता सहना सीखेंगे,
अपने अनुभव से, सपनों को, खुद पूरा करना सीखेंगे,
दूर रहें उनके बचपन से, चिन्ता, कुण्ठा, तनाव कुठौर ।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

घोर प्रतिस्पर्धा के दबाव से, नवपीढ़ी में, जहर भर रहा,
युवा, असफलता से टूट, नशा, 'सुसाइड' वरण कर रहा,
तनाव मुक्त रहने के साधन, ये नहीं जानते, क्या हैं और ?
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

चिन्ता, कुण्ठा, दुख, तनाव, खुद ही दूर भगाना सीखें,
उल्लास, उमंगें हों आंखों में, हरपल ही मुस्काते दीखें,
अपनी इच्छा के क्षेत्रों के, वह खुद बन पायेंगे शिरमौर ।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

उन की स्वाभाविक प्रतिभायें, नित्य स्वतः निखरने दो,
उनके मन उन्मुक्त विहग को, आसमान तक उडने दो,
जीवन में नवऊर्जा भर देंगी, प्रतिदिन आती किरणें सौर ।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

धैर्य से उन की बातें सुन कर, अपने निर्णय ही ना थोपें,
उनके ‘व्यू पॉइंट’ के संग, तर्क, अनुभव अपने भी सौंपें,
विश्लेषण से वह पायेंगे, स्वीकार्य समाधान बहुतेरे और।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

उनके कोमल मन पर कोई, किसी तरह का प्रेसर ना हो,
प्राकृतिक विकास में कोई, अनुचित कुण्ठा बाधक ना हो,
स्वाभिमान के दृढ पग उन के, करें प्रदर्शित ना डगडौर ।
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

क्यूँ रहे ठूंसते, मम जहन में, अपनी इच्छाओं के कौर ?
“ मेरी चाहत क्या थी “, नहीं किया क्यों, इस पर गौर ?

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