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प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है,
तब से मैंने सांसों को, महका हुआ पाया है,
तुझे पा कर मन मेरा, पल पल मुस्काया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
धड़कन को उमंगें दीं, मन मुदित तरंगें दीं,
दुखदर्द की सब वजहें, जीवन से मेरे हर लीं,
जीवन ही नहीं तुमने, सपनों को सजाया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
जिस स्वर्ग की चाहत में, जग जन मन अटका है,
ऋषि, मुनि जिसे पाने को, युग युग से भटका है,
तुम ने एक बेहतर स्वर्ग, इस घर को बनाया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
कल भूत का डेरा था, मन मंदिरअब पाया,
जहाँ प्राणों से भी प्यारी, आराध्या को पाया,
स्थान यही जग में, जहाँ सुख मन चाहा है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
यदि त्याग औ’ संयम की, सब मूर्ति बने होते,
धरती पर मानव के, क्या अस्तित्व बचे होते?
सब ने ही प्रकृति के, नियमों को निभाया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
दुख पाये संग मेरे, पर नहीं शिकायत की,
अपनी सारी खुशियां भी, नाम मेरे लिख दीं,
तुम ने मेरी दुनियां को, रंगों से सजाया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
वह क्या जाने, जो निर्मम, निर्मोही होता है,
पा कर खोना, कितना, दुखदायी होता है,
आना, मिलना, खोना क्यूँ नियम बनाया है?
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
तुम्हें पाना निश्चित ही, सौभाग्य हमारा है,
तुम क्या जानो कितना, उपकार तुम्हारा है
निश्चित है बिछड़ना भी, यूँ दिल घबराया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
धन्यवाद बहुत तेरा, कृपा परमपिता की भी,
है कृपा बहुत बरसी, दोनों मात पिता की भी,
जिनने आशीषें देकर, तुम्हें हमसे मिलाया है।
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है!
तुम्हें पा कर दिल मेरा, फूला न समाता है,
रोज नई नई खुशियों के, नवस्वप्न सजाता है,
यह सच है तुम्हें पा कर, तन मन बौराया है।
प्रिये! हाथ तेरा जब से, इन हाथों में आया है,
तब से ही सांसों को, महका हुआ पाया है !
प्रिये ! हाथ तेरा जब से, सौगात में पाया है !
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