जब तक थे हम जॉब में, उन के थे क़ानून,
घर में भी कब रह सके, बन कर अफलातून,
अब सुख, सुविधा, खुशियों भरा, घर होगा सुखधाम,
अपनत्व प्यार में पगा मिलेगा, आराम ही आराम !
दफ्तर, घर परिवार की, अब रही न जिम्मेदारी,
अब स्वर्गधाम के वाशिंदे हैं, हम तुम प्राणनप्यारी,
अब चाहे हों गर्मी, सर्दी, या हों फिर बरसातें,
हम दोनों अनवरत करेंगे, मीठी मीठीं बातें !
भली रिटायर्ड जिंदगी, न बंधन कोई लगाम,
आजादी का जश्न मनाएं, लिए हाथ में दाम,
मेरे प्यार की गहराई को, अब तुम लेना देख,
अब घूमेंगे हम तुम दोनों, सारा देश, विदेश !
सुनकर मेरी इन बातों को, बोली मन्द मन्द मुस्काई,
''मौज मस्तियाँ बहुत कीं तुमने, अब करिये भरपाई,
रही उम्रभर पिसती घर में, कभी मिला नहीं आराम,
सुनिए ! अब मेरे घंटे चौबीस के, बन के रहो गुलाम !
सुन के उसके मन की बातें, मैं थर्राया, घबराया,
लेकिन उसकी इन बातों का, तोड़ नहीं कुछ पाया,
हम पतिओं के भाग्य में बोलो, कहाँ है चैन, सकून,
लगता, अब घंटे चौबीस ही मेरा, पीया करेगी खून !
हम पतियों के कभी न सुधरे, दशा, ग्रह, ग्रह चाल,
जादू, टोने, वास्तु, ज्योतिषी, हो गए व्यर्थ, निढाल,
पत्नी की हो राशि कोई भी, पर सोच सभी का एक,
'सीधीसाधी', 'नेक दिलों की', 'एक से बढ़कर एक'!
बन्धु-
पत्नी की अनुपम सुन्दरता, चाहे अपलक, हरपल देख,
पर पत्नी जी के जुल्म घटेंगे ', ऐसे दिवास्वप्न मत देख !