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सच कहती हूँ...
अब तो तुम को, मुझ से बिलकुल प्यार नहीं है।
“तेरे इन आरोपों का, औचित्य नहीं आधार नहीं है।”
सच कहती हूँ...

जब से दूर गए हो प्रियतम, विरह अग्नि में झुलस रही हूँ,
आशंका से, व्यथित, त्रस्त मैं, बच्चों पर ही बरस रही हूँ,
तेरे गम में तरस तरस कर, रह रह अँखियाँ बरस रहीं हैं,
यही नहीं दो शब्द प्यार की, पाती को भी तरस गईं हैं।
क्या मेरे शक और शंका का, यह बाजिब आधार नहीं है?
सच कहती हूँ...

“युग युग से शंका की मारी, नारी कब आश्वस्त रही है,
सदां सुरक्षा के प्रति खुद ही, आशंकित, भयग्रस्त रही है,
कैसे मैं विश्वास दिलाऊं, चीर के क्या दिल को दिखलाऊं,
हर पल इन साँसों, धड़कन में, सपनों में भी तुमको पाऊं।
मैं अफसर हूँ एक बैंक का, व्यस्त बहुत हूँ, समय नहीं है।”
सच कहती हूँ...

व्यर्थ दलीलें देते हो तुम, इन में कोई तथ्य नहीं है,
तेरी इन बातों से लगता, कोई मुई फंसी हुई है,
सरकारी है बैंक तुम्हारा, काम भला कोई कब करता है,
सुन्दर ग्राहक, सहकर्मी से, हर कोई बात किया करता है।
श्वेत झूठ ये व्यर्थ दलीलें, अच्छी तो, पर सत्य नहीं हैं !
सच कहती हूँ...

“कन्चन सा तन, मन को बांधे, नेह के बन्धन पग में डाले,
यौवन से तपती काया को, केश की ठण्डी छाँव में पाले,
ऐसे मधुमय स्वर्ग आश्रम को, कोई बिरला पागल त्यागे,
सच यथार्थ मृगनयनी तज कर, क्यूँ मृग तृष्णा पीछे भागे?
मेरा मन तेरे प्रेम प्यार का, कैदी है, विक्षिप्त नहीं है!”
सच कहती हूँ...

मर्दों के कारिस्तानी के, मैंने चर्चे बहुत सुने हैं,
सीधे साधे दिखने वाले, होते शातिर कई गुने हैं,
झूठा दगाबाज होना तो, इनकी फितरत में होता है,
इन पर जो विश्वास करे तो, वह जीवन भर ही रोता है।
तेरे लक्षण देख के लगता, अब अच्छे हालात नहीं हैं!
सच कहती हूँ...

मर्दों में गिरगिट का लक्षण, गिरगिट से ज्यादा होता है,
आँख मूंद आदेश मानने, वाला तो प्यादा होता है,
मैं तो खुद की जनरल नायक, सोच समझ के चल सकती हूँ,
है मजमून लिखा क्या अन्दर, देख लिफाफा पढ़ सकती हूँ।
अब वह राह चलूंगी जिस पर, खतरे का आभास नहीं है!
सच कहती हूँ...

अब तो सोच लिया है मैंने, मैं तो तेरे संग चलूंगी,
बहुत दिनों रह चुकी अकेली, अब और अकेली नहीं रहूंगी,
लगता है बच्चे भी मुझ से, शायद ज्यादा ऊब गए हैं,
दुध मुंहे अब नहीं रहे वे, समझदार ही खूब हुए हैं।
जवाब मुझे पकडाते दोनों, जो मुझको स्वीकार नहीं हैं!
सच कहती हूँ...

आई थी मैं पत्नी बन कर, बना के आया छोड़ दिया है,
खुद तो मस्त अकेले मुझको, यूँ तलाक सा श्राप दिया है,
टाल रहे हो संग रखने में, नित नए रोज बहाने कर के,
इधर तुम्हारे इन बच्चों ने, खून पिया है जी भर भर के।
बतला मेरी इस हालत का, क्या तू जिम्मेदार नहीं है?
सच कहती हूँ...

“है मुझको मंजूर यह रानी, संग चलो घर, मुझे सम्हालो,
आशा के अनुरूप स्वयं तुम, भूत का डेरा स्वर्ग बना लो,
पर घर में बैठे बैठे ही, बोर बहुत तुम हुआ करोगी,
सुबह शाम हर पल रो रो कर, जीना दूभर और करोगी।
वक़्त पे वापस घर को आना, अब संभव यह रहा नहीं है! ”
सच कहती हूँ...

“आरोपी, विष बुझे हुए यूँ, व्यंग नुकीले बाण ना मारो,
अपने हृदय में शंका की, पौध ना रोपो, बीज ना डालो,
शक की भूलभुलैय्या में तुम, भ्रम के मकड़ी जाल न डालो,
लेकर कठिन परीक्षा मेरी, जैसे चाहो तुम आजमालो।
अग्नि परीक्षा से भी मुझको, कोई डर कोई खौफ नहीं है!”
सच कहती हूँ...

लगता रूठ गए तुम प्रियतम, ये तो कोई बात नहीं है,
मन शंका तुमसे कहने का, क्या मुझको अधिकार नहीं है?
सह सकती हूँ सब कुछ लेकिन, यह हरगिज न कतई सहूंगी,
प्यार मैं अपना और किसी संग, बाँट के जिन्दा नहीं रहूंगी।
कैसे अपना दिल बहलाऊं, जब तू ही मेरे पास नहीं है?
सच कहती हूँ...

मेरे सर पर हाथ रखो और, मुझे बताओ, प्यार है कितना,
प्यार तुम्हारा निश्छल पावन, नहीं क्या मैला रत्ती जितना?
“कैसी बातें तुम करती हो, क्या अब भी विश्वास नहीं है?
एक नहीं, दो हाथ मैं रखकर, कहता बिलकुल सत्य यही है -
मेरे मन मंदिर की मूरत, तू ही तू, कोई और नहीं है!”
सच कहती हूँ...

“शंका को शंका तक रक्खो, दिल दिमाग पर बोझ न डालो,
कहीं न ऐसा हो तनाव से , कोई भयंकर रोग लगा लो,
स्वर्ग सा सुन्दर घर अपना है, जिसे व्यर्थ में नर्क बना लो,
आपस के इस प्रेम प्यार में, संशय के अवरोध ना डालो।
भविष्य बनाना है बच्चों का, और कोई उद्देश्य नहीं है!”
सच कहती हूँ...

मैंने देखा है अब तुम को, गुस्सा कुछ ज्यादा आता है,
संग हमारे नहीं अकेला, रहना कुछ ज्यादा भाता है,
इन बातों से मुझको लगता, जरूर दाल में कुछ काला है,
क्या बस बैठी इन आँखों में, और कोई सुन्दर बाला है?
पहले जैसे प्रेम प्यार के, घर में अब हालात नहीं हैं!
सच कहती हूँ...

मेरे और मेरे बच्चों के, जन्म दिवस रीते जाते हैं,
ऐसे अवसर पर घरवाले, गिफ्ट बहुत लेकर आते हैं,
मधुर मिलन की रात थी लेकिन, गिफ्ट नहीं तब भी तुम लाये,
झूठे ही साबित कर बैठे, सखियों ने जो ख्वाव दिखाए।
तुम जैसे नीरस व्यक्ति को, शादी का अधिकार नहीं है!
सच कहती हूँ...

सच कहती हूँ -
अब तो तुम को, मुझ से बिलकुल प्यार नहीं है।
“तेरे इन आरोपों का, औचित्य नहीं आधार नहीं है।”

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