भाई, संसद की गरिमा को तुम ने, कैसे तार तार कर दिया,
हम देश के वाशिन्दों को तुमने, कितना शर्मसार कर दिया,
अपने इन प्रतिनिधियों ने ही, आज अचम्भित हमें कर दिया,
देश ही क्या, देश का जनजन, खूब कलंकित आज कर दिया।
'देशभक्त',' सेवक' लोगों ने, क्या सुन्दर इतिहास लिख दिया ?

इसने शीशा, उसने माइक, जो हाथ आया, तोडा ताड़ा,
मिर्च का स्प्रे, और कोई ले, हाथ में चाकू, खूब दहाड़ा,
चारों कोने चित्त हुए कुछ, किसने किसको यहाँ पछाड़ा,
संसद को, हर महाबली ने, बना दिया क्या खूब अखाडा।
'देशभक्त',' सेवक' लोगों ने, 'गर्व' से ऊँचा शीष कर दिया।

स्वाधीनता की जंग लड़ कर, क्या मिला हम को नतीजा,
राज करते आज तक, धर्म, जाति, भ्रष्टता, भाई भतीजा,
भूख, ठण्ड से मरती जनता, नेतत्व का ना दिल पसीजा,
सरकार घूमती अब विदेश में, लेकर देश देश का वीजा।
मरने वालों की लाशों में भी, राजनीति का रंग भर दिया।

एक स्वतंत्रता सेनानी से मैंने, यूँहीं पूंछ लिया एक बार,
सत्य बता दो, लगा है कैसा, आज़ादी का यह अवतार ?
मुंह लटकाकर मुझसे बोला, शायद सुन न पाओ मर्म,
आज़ादी के पागल पन पर, अब आती है हमको शर्म ।
डूब मरें हम चुल्लू में ही, शर्म का इतना नीर भर दिया।

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