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" सफर जिन्दगी का होगा सुहाना ",
रहे सोचते, आ गया अब मुहाना,
खतम होंगीं साॅसें, खतम होंगीं धडकन,
खतम जिन्दगी का होगा तराना।
न चलता कभी मौत से कुछ बहाना।।
सफर जिन्दगी का

मौत है देखो निश्चित, सभी जानते हैं,
तन जलेगा, गलेगा, नियति मानते हैं,
जो मृत तन के अंग दे, जां को बचाये
उसे ईश्वर के बराबर सभी मानते है। 
तुम्हीं हो ईश्वर, ये सच करके दिखाना।।
सफर जिन्दगी का

जानता मैं नहीं, क्या गलत, क्या सही है,
पर आखिरी आरजू, जिन्दगी की यही है,
जीते जी चाहता मैं, देहदान कर के जाना,
कुछ को देदूं ये दुर्लभ, खुशी का खजाना।
कुछ का मरके भी, कर पाऊं जीवन सुहाना।।
सफर जिन्दगी का

जो देगा, वह पायेगा, दुआ का खजाना,
रहे मरके भी जारी, सत्कर्मों का कमाना,
फिर सत्कर्म ऐसा कोई, नहीं होगा दूजा,
क्या इस के समकक्ष, होगी कोई पूजा ?
मैं मानव हूं, मानव का फर्ज है निभाना।।
सफर जिन्दगी का

मौत के दंश, युगों से, झेलते आये हम सब,
क्रिया कर्म, धर्म अनुरूप, करते हैं हम सब,
देह सृष्टि की दौलत, दुर्लभ,अनुपम खजाना,
है महापुण्य देह दान, ये बात मत भूल जाना,
कुछ मरते हुओं को भी, चाहता हूं जिलाना।।
सफर जिन्दगी का

है नहीं मुझको चाहत, याद रक्खे जमाना,
सीख जायेंगे मेरे अंग, अब पुनः मुस्कुराना,
उमर भर साथ मेरा था, जिन ने निभाया,
उनको मैं दे पाऊं, कोई नव घर, ठिकाना।
यही सर्वोत्तम कर्म है, तुम जग को बताना।।
सफर जिन्दगी का

"सफर जिन्दगी का होगा सुहाना",
रहे सोचते, आ गया अब मुहाना,
खतम होंगीं साॅसें, खतम होंगीं धडकन,
खतम जिन्दगी का होगा तराना।
न चलता कभी मौत से कुछ बहाना।।
सफर जिन्दगी का

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