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सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं,
दिल के टुकड़ों के सुख हेतु, खुद ही दुख भोगा करते हैं,
उनसे भी जब मिले उपेक्षा, उनके दिल आहत हो करके,
गुप चुप लेकिन जार जार ही, रह रह कर रोया करते हैं।
सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं!
प्यार पर अपने प्यार लुटाया, पर बदले में प्यार न पाया,
पीढ़ी अन्तर से आहत मन, क्यूँ अब तक, उबर न पाया,
हो समर्थ पंछी उड़ जायें, फिर भी मात पिता को देखो -
अपनी उम्र उन्हें देने की, हर पल दुआ दिया करते हैं।
सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं!
इनका खून नहीं है हम में, अपना खून इन्हीं अपनों में,
पर जबां आँख सह ना पाती, वृद्धों को अपने सपनों में,
बच्चों की निर्मोही ऑंखें, इन्हें किरकिरी भांति समझतीं,
फिर भी वृद्ध, थकी आँखों से, उनकी राह तका करते हैं।
सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं!
दोनों आस यही करते हैं, बस बच्चे इतनी दूर ही जायें,
जो प्राण पखेरू के उड़ने से, पहले ही वापस आ जायें,
कभी बुलावा आ सकता है, इस का कोई वक़्त नहीं है,
'क्या बिना मिले हम जायेंगे’, यही सोच हरपल डरते हैं।
सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं!
सबने अपने अलग सोच से, पाया अलग अलग अनुभव है,
जुदा अनुभवों के कारण ही, नहीं एक सोच होना संभव है,
कुछ को प्रिय अपरिग्रह, अधिकांश को प्रिय होता वैभव है,
इसी पृथक सोच को जगवाले, जनरेशन गैप कहा करते हैं।
फिर पीढ़ी, नव पीढ़ी दोनों ही, जिस के दंश सहा करते हैं।
सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं!
जो अभाव में जीते आये, वो पैसे की अहमियत समझते,
नव पीढ़ी जो कहे आवश्यक, वृद्ध जरूरी नहीं समझते,
सोच की गहरी खाई में जब, भरने लगती है टोका टाकी,
तब रिश्तों में कटुता बढ़ती है, प्यार नहीं रह पाता बाकी,
गैर जरूरी अधिक प्रेम तब, कहलाता है ‘दखलअंदाजी’,
तब परेशां हो बच्चे, उन को, वृद्धाश्रम भेज दिया करते हैं।
सर्वोत्तम सन्तान का हर सुख, मात पिता सोचा करते हैं!
दिल के टुकड़ों के सुख हेतु, खुद ही दुख भोगा करते हैं!!