लो बीत गया वैलेंटाइन डे ! सभी पर प्यार का भूत था सवार, उतर गया खुमार और बुखार. कुछ को लगी ये खुमारी हल्की, कुछ को लगी भारी, किस्मत थी उनकी या किस्मत तुम्हारी। पहले तो यह दिन कभी सुना नहीं था सिर्फ करवा चौथ, जन्मदिन और वैवाहिक जयंती जैसे व्यक्तिगत उत्सव हुआ करते थे भारत में। लेकिन अब वैलेंटाइन डे एक सामूहिक सोशल मीडिया पर वैलेंटाइन डे महोत्सव बन कर भारत ही नहीं विश्व के चप्पे चप्पे पर छा गया है जो नव पीढ़ी के तन मन में नई उमंगें, तरंगें, जोश, जनून और उत्साह भर देता है। लेकिन पुरानी पीढ़ी में नव पीढ़ी के अनुरूप जीने की लालसा, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं , कुछ कुंठा, तनाव, आपसी रिश्तों में गहरी खटास और दरार जो कभी कभी मधुर रिश्तों में तलाक की नींव रख देता है। इस विषय पर यह मेरा व्यक्तिगत विचार है और इस पर अपनी critical analysis आपके समक्ष संकलन के साथ, प्रेषित कर रहा हूँ, पसंद आये तो लाइक जरूर करें सुझाव हों तो सुझाव भी अवश्य भेजें साथ ही साथ मेरा मार्गदर्शन कर अनुग्रहीत करें। अंत में उन सभी वैलेंटाइन्स का धन्यवाद जरूर करना चाहूँगा जिन्होंने अपनी निर्भीक बेबाक भावनाओं को सोशल मीडिया, व्हाट्स एप पर लिखा जिस से मुझे निम्न कृति की प्रेरणा मिली।
नव पीढ़ी की वैलेंटाइन्स, दिन में तारे दिखा रहीं हैं,
सभी पुरानी वैलेंटाइन्स को, नए गुर सिखा रहीं हैं।
वैलेंटाइन्स ने, व्हाट्स एप पर, क्या क्या देख लिखा है,
''हम सब पति हैं अत्याचारी'', मर्म बस यही दिखा है।
"पूरी, सब्जी, खीर, आज किचन में, ये ही बना रहे हैं,"
"बना के आलू टिक्की, बड़े प्यार से, मुझको खिला रहे हैं।"
''कहे पड़ोसन- ' मैंने तो बनबाये, लड्डू और कचौड़ी,'
सारी कॉलोनी में गाती फिरती, होकर खुश और चौड़ी।''
"मेरे इनको तो कोई पुरानी, वैलेंटाइन है याद आई,
तभी इन्होने आज, अभी तक, बेड टी नहीं पिलाई।"
"देख मेंरी सेवा में, मेरे ये, छैला बन कर खड़े हुए हैं,"
"सुबह से मेरे तो, फुला के मुंह, बिस्तर में पड़े हुए हैं।"
"अपने तो, ना कुछ बना रहे हैं, ना कुछ खिला रहे हैं,
गिफ्ट कोई भी दिया नहीं, पर मुझे गुस्सा दिला रहे हैं।"
भाभी बोलीं यूँ भैय्या से -
''कम से कम आज आप भी, चाय तो हमें पिला दो,
या फिर बाजार से ला कर, आइस क्रीम खिला दो।"
मन ही मन लगीं वह कहने -
अगर गए भी, तो लायेंगे, केवल टॉफी, लेमन चूस,
सात जन्म से भुगत रहीं हूँ इन को, हैं पक्के कंजूस।"
अपनी परमप्रिय यूँ बोलीं -
"आज के दिन तो, आप बनालो, छोले और भठूरे,
ऐसे ही कुछ ख्वाब बहुत से, अब तक रहे अधूरे।''
'डायमंड रिंग, नेकलेस, केक, चाकलेट', यह मेरी की मांगें,
उसकी आँखें, देख के डरता, कहीं ना तोड़े, मेरी बूढी टांगें।
वह खुश किस्मत हैं, जो मना रहीं हैं , '' बेलन टांग डे''
देखूं कबतक, मेरा यह कंजूस मनाये, " कुछ ना मांग डे।"
व्हाट्स एप पढ़ पढ़ कर ही, भाभी, पत्नी बिगड़ रही हैं,
जो थीं सुघड़, सलोनी, सुघड़ अब बिल्कुल नहीं रही हैं।
हम सब पति, पत्नी के हाथों की, कठपुतली बने हुए हैं,
फिर भी उन को, हम आँखों की, पुतली में जड़े हुए हैं।
हम नाच रहे हैं उन की धुन पर, वो जैसे चाहें नचायें,
उन की हाँ में हाँ कह कर ही, सब पति जान बचायें।