Image by Anil sharma from Pixabay

हम पुरुषों ने हासिल करी, दुनियां भर में जीत,
पर अनादिकाल से आजतक, घर में ही भयभीत,
पुरुष चाँद तक जा पहुंचा है, मंगल नहीं अछूता,
पर घर में कुछ भी कहने की, न हिम्मत, न बूता।

पत्नी सुख के लिए हटाये, चक्की, चूल्हे, सिल बट्टे
मारे मक्खी, मच्छर, छिपकली, छिपे हुए तिलचट्टे,
दिये डिशवाशर, फ्रिज, मिक्सर और वाशिंग मशीन,
फिर भी, हमें नचाती रहतीं, खुद हो बिस्तर आसीन।
वह इन को भी नहीं चलाती, तर्क सुनो क्या देती -
‘बिजली की चीजें छूते ही, मुझको घबराहट होती।'

वैसे इकदूजे के पूरक, हमदम, इक थैली के चट्टेबट्टे,
पर जुल्म पति पर ढाते देखे, सुन्दर जालिम हट्टे कट्टे,
नहीं आज तक उस ने छोड़ा, घर का बेलन, चिमटा,
जिसके डर से हर पति रहता, घर में सिमटा सिमटा ।

गुप चुप ''रोटी मेकर'' मैंने, ऑनलाइन घर मंगवाया
झटसे चिमटा बेलन उसने, ड्राइंगरूम बीच सजाया,
बड़े बड़े शब्दों में लिख कर, यह चिप्पी चिपका दी -
ये अस्त्र शस्त्र बाहर करने की, हिम्मत कैसे करली ?'

मुझको इस गुस्ताखी की, देखो कैसी विकट सजा दी,
कभी नहीं बजी थी अब तक, मेरी ऐसी बैंड बजा दी,
बिना ढोल के, कॉलोनी में, स्वतः हो गई यही मुनादी,
घर में बीबी की चलती है, कुछ भी मुझे नहीं आजादी ।

लगता, अबतो हर पत्नी ने, ऐसा उठा लिया है बीड़ा,
जिस से पति के सोच, दिमाग में, जंग लगे न कीड़ा,
चिमटे, बेलन के डर से ही, हर पति काबू में आता,
ताक झाँक तज, दफ्तर से घर, सीधा आता, जाता ।

कभी कार्य वश, यदि दफ्तर में, हो जाये जब देरी,
पैर लड़खड़ाने लगते मेरे, और रूह कांपती मेरी,
शांतिपाठ, मन्त्रों को पढ़ पढ़, घर की बेल बजाऊं,
फिर भी मैं, घर में घुसने की, हिम्मत जुटा ना पाऊं ।

अगर कहीं मैं डर के कारण, बाहर रात बिताऊं -
संभव है मैं, कहीं कुछ दिनों, हवा जेल की खाऊं,
जुल्मी, घर, मित्र, रिश्तेदारी में, भद्द मेरी पिटवा दे,
डरता हूं, कहीं घर की बातें, न थाने तक पहुंचा दे ।

है कोई माँ का लाल जो, केवल इतना कर पाए,
चिमटे, बेलन पर फोम का, ऐसा कवच चढ़ाए,
जिसका गृहलक्ष्मी, दुर्गा को, पता नहीं चल पाए,
गर पत्नी मारे तो बन्दे को, ज्यादा चोट ना आये,
अगले दिन भी बिना दर्द के, गृह कार्य निबटाये,
है कोई ऐसा सिद्ध पुरुष, जो ऐसा सच करवाए ?

या पति को घेरे कोई ऐसी, 'अदृश्य फील्ड' बनाये,
पत्नी का कोई अस्त्र शस्त्र भी,जिसको भेद ना पाये,
पति को छूते ही तुरन्त वो, 'रिवर्स मोड' अपनाये,
झटका खाकर, डर से फिर, कभी न हाथ उठाये ।
(Newton's 3rd law of motion)

गलत इरादों से जब, चिमटा, बेलन अगर उड़ाए,
पति से फाइव एम् एम् पहले, बेदम हो गिर जाए,
परमप्रिय घर की अलास्का, उसको यह समझाए -
'जो तेरी एक झलक देख खुद, घुटनों पर आ जाए,
सौन्दर्यरूप से घायल पति पे क्यूँ हथियार चलाये ?
(Available technologies of missile and "Iron Dome" etc. )

न्यूटन, एडीसन से ले कर, भाभा और कलाम,
पत्नी के जुल्मों पर अबतक, कसी न गई लगाम,
हम पतियों की किस्मत में है, कहो कहाँ आराम,
यूँ तीन लोक में मिलते केवल, पत्नी भक्त, गुलाम ।
शादी से पहले ही था, केवल सुन्दर, सुखद सवेरा,
शुद्ध, सिद्ध अब यही कहावत, 'दीपक तले अँधेरा' ।

माना, हर पत्नी ने पति के, सीने पर ही मूंग दली है,
पर उस के जुल्मों की लत भी, लगने लगी भली है,
छोड़ नहीं सकता, मैं पत्नी, चाहे मारे, पीटे, कूटे,
क्योकि साया बनके, हर दुख में, मेरे संग चली है ।
नौक झोंक में कुछ भी कहलूं, पर बात यही सच्ची है -
" मेरी पत्नी, इस दुनियां में, सब से ही अच्छी है !”

हम पुरुषों ने नहीं आजतक, कुछ अपने लिए किया है,
पर, पत्नी के सुख की खातिर, हर सुख ईजाद किया है,
क्या क्या हमने किया, लिखा जो, सब सम्पूर्ण ही सच है,
इसीलिए चिमटा, बेलन का, कहीं बिकता नहीं कवच है।

माना, मेरी जान उन्हीं के, हाथों में दबी, कसी है,
और मेरी अब उम्र भी ज्यादा, देखो कहाँ बची है,
मैंने तो इन, चिमटे, बेलन की, वारिश खूब सही है,
पर बच्चों के सुख की खातिर, ये सब बात कही है,
मुझ को दुनियां के पतियों में, जो भी कमी दिखी है,
डरते डरते भी, कविता में, हर सच्ची बात लिखी है ।

जो चिमटे, बेलन जनित दर्द से, जग को मुक्ति दिलाये,
‘गृहशांति हेतु विश्व का’, प्रस्तावित ‘नोबल प्राइज’ पाये ।

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