'तुम स्वप्न, खुली इन आंखों का,
उपवन की सुन्दरतम कलिका,
या स्वर्ग लोक से आई परी,
सौन्दर्य रूप की हो मलिका',

हूं भ्रमित, चकित ये सोच रहा,
मैं कैसे पहुंचा इस दर तक -
है पूर्व जन्म का आकर्षण,
या सम्मोहन का हूं शिकार?
जो भी हो, मन पगलाया है,
यही बार बार दोहराया है -
तुम आ जाओ फिर एक बार,

बन कर खुशियों के सूत्रधार,
निर्विघ्न सृष्टि संचालन को,
फिर लायें जीवन में बहार।।
बस साथ तुम्हारे होने से,
सब दूर रहेंगे दुख प्रहार,
नियति लिखा स्वीकार करो,
प्रभु इच्छा या फिर चमत्कार,
बन जाओ खुशियों का आधार,
हर स्वप्न करेंगे हम साकार।
तुम आ जाओ फिर एक बार …

काले केशों से यदा कदा,
जब होगी रौशन रूप तडित,
मुख मण्डल पर दो रत्न नयन,
और आभा मुस्कान जडित,
इस अनुपम रूप मनोहर पर,
मैं कर दूंगा जीवन निसार।
तुम आ जाओ फिर एक बार ….

यह कौंध भरे घन गरज रहे,
ये ललक भरे लब लरज रहे,
प्रेमातुरता से झन्कृत तन मन,
मम रोम रोम यह अरज करे-
“इस रूप राशि को अर्पित कर,
युगयुग का चिर संचित दुलार”।
तुम आ जाओ फिर एक बार ….

तुम ममतामयी, करुणा सागर,
व्योमित सुख से भर उर गागर,
जन्मों से अर्पण करती आईं,
अनुराग, प्रेम का मधु सागर,
नवसृजन समर्पित कर सृष्टि को,
इस सृष्टि का कर्जा उतार।
तुम आ जाओ फिर एक बार ….

जब अन्तिम सांस हमारी हो,
तुम्हें रूहपटल पर लूं उतार,
रहे अजर,अमिट जन्मों जन्मों,
चाहे मृत्यु रथों पर हूं सवार,
इस झलक, रूह के अंकन से,
पहचान ही लूंगा बार बार।
तुम आ जाओ फिर एक बार ….

पर मम कसम हमेशा याद रहे,
" ना कभी बहाना अश्रु धार ",
हम दोंनो का है अमर प्यार,
यूंही चक्र चलेंगे बार बार,
हम दोनों ने आदेश नियति का,
करना होगा ही स्वीकार,
धर धैर्य करो बस इन्तजार,
फिर पुनर्मिलन का इन्तजार।
तुम आ जाओ फिर एक बार,

बन कर खुशियों के सूत्रधार,
निर्विघ्न सृष्टि संचालन को,
फिर लायें जीवन में बहार।।

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