Photo by Malcolm Lightbody on Unsplash

पहले होता था "फोग" यानी कोहरा,
अब होता है "स्मोग",
जिसका दुष्प्रभाव, अटैक होता है दोहरा,
जगह जगह प्रदूषण बैठ गया है -
मार कर कुंडली और पालती -
हम असहाय कर सकते हैं-
सिर्फ " चेक एयर क्वालिटी"!
वैसे तो हम पहुँच गए मंगल,
पर हमने किया है अपना और
आने वाली पीढ़ियों का घोर अमंगल,
खुद ही काटे हैं पेड़-पौधे,
नष्ट किये हैं जंगल,
जगह जगह बड़े बड़े
खड़े कर लिए -
"कंक्रीट के जंगल"!


याद कीजिए -
कितनी लाचार थी हमारी,
पूरी की पूरी व्यवस्था,
कितनी दयनीय थी,
मानव और हर जीव जंतु की अवस्था,
जब लातूर में हुई थी
पानी की समस्या,
समय रहते ढूंढ लीजिये,
जीने के नए नए तरीके और सलीके,
या फिर कर लीजिये,
शिव जी की तरह घोर तपस्या,
लेकिन अब अवतरित नहीं होगी कोई गंगा,
क्योकि मानव खुद कर रहा है,
पृथ्वी का हरा आवरण,
नोंच नोच कर नंगा।

प्रकृति बेचारी और कब तक,
कैसे कैसे यह बात समझायेगी,
हे मानव ! तेरी अकल में,
कोई बात नहीं आएगी.
अभी तो लाटूर का,
एक मात्र ट्रेलर दिखाया है,
पूरी फिल्म कितनी भयावह होगी,
मात्र इतना बताया है,
तेरे बगल में धरी की धरी रह जायेगी,
हर तरह की जीवन रक्षक दवा,
उन्हें उठा कर खाने का,
समय भी नहीं देगी प्रदूषित हवा!

सृष्टि के हर अवयव को,
सह अस्तित्व को,
मत काटो, मत बर्वाद करो,
परखो, समझो, तुरंत जुट जाओ,
पुनः आबाद करो,
लातूर तो एक द्रष्टान्त है,
जैन धर्म का भी यही सिद्धांत है -
“खुद जीओ जीने दो सब को"
वरना -
बचा नहीं पाओगे खुद को।

.    .    .

Discus