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‘वैलेंटाइन डे’ पर सभी हैं देते, सुर्ख लाल गुलाब,
पर दिया नहीं है कभी आपने, मुझको फूल गुलाब,
प्रणय निवेदन की है यही, नव अद्भुत तकनीक,
मॉडर्न, रोमांटिक बनना, कुछ बच्चों से लो सीख ।

आडम्बर के पैमानों से ही, अब प्यार क्यूँ नाप रही हो,
पर मम दोष, सभी कमियों को, खुद ही ढांप रही हो,
अपनत्व, प्यार से महकी सांसें, सुख दुख संग चली हो,
क्या दूँ उसको, सोच न पाऊं, जो खुद नायाब कली हो ।

गुलाब कली से ज्यादा सुन्दर, मोहक गन्ध भरी हो,
सात जन्म तक साथ रहे वह, मनहर स्वर्ग परी हो,
शब्द नहीं हैं, जो तेरे मन की, सुन्दरता कह पाऊं,
गुलाब कली देकर मलिका को, क्यूँ पैबन्द लगाऊं ?

पास मेरे आ, तेरे कान में, मैं, मन की बात बताऊं,
इन आँखों में झांक तुझे तेरा, सुन्दर रूप दिखाऊं,
तू ही तो मेरी स्वप्न सुन्दरी, और तू ही स्वर्ग परी है,
तू ही सच्चा हीरा, मोती, और चांदी, स्वर्ण खरी है ।

अगर कहो तो तुम्हें गुलाब का उपवन दे सकता हूँ,
पर फूल, कली को तोड़, तुम्हें मैं कैसे दे सकता हूँ,
अगर कहोगी, तो भी पाप, कभी ऐसा नहीं करूंगा,
तोड़ डाल से फूल, कली का, तोहफा कभी न दूंगा ।

प्रिये ! मरणासन्न फूल, कली, हम तुम्हें ना दे पायेंगे,
क्या प्रणय निवेदन साथ में, तोहफे मुर्दों के लायेंगे ?
दिन, दो दिन महकेंगे, मुरझाकर,सूख, बिखर जायेंगे,
लेकिन हम इन की हत्या के, पापी, दोषी बन जायेंगे ।

फूल तोड़ता नहीं, सोचता, बीज फिर इन में नये बनेंगे,
हवा शुद्ध करने वाले ही, कुछ निश्चित, पौधे, वृक्ष बनेंगे,
मत बांटो ये फूल, कली, कत्ल, फूलों का बन्द करा दो,
जिस से सृष्टि का उपवन, हर दम, महका हरा भरा हो ।

‘यूज एण्ड थ्रो’ की संस्कृति हमें, इसमें नजर आती है,
लेकिन जन्म जन्म के रिश्तों की, महक हमें भाती है,
देखो ऐसे व्यर्थ दिखावे, आडम्बर से, मैं तो कतराता हूँ,
पर सात जन्म तक, संबंधों को, तहेदिल से अपनाता हूँ ।

हम विदेशी बातें अपना लेते, छोड़ के शर्म, लिहाज,
उन्हें मुबारक, उनकी बातें, और उनके रीत रिवाज,
क्यों तुमको लगता है ये, पक्का, सच्चा, प्रेम प्रदर्शन,
लेकिन मुझ को तो लगता है, अभिशप्त प्रेम जिहाद ।

आओ, नवपीढ़ी को समझाते हैं, और करें यही मनुहार,
पुष्प, कली की जगह दीजिये, पुष्पित पौधों का उपहार,
जब जब हर मौसम में फिर उनमें, नए नए फूल खिलेंगे,
तब तब आप, उनकी यादों में, हर पल बार बार महकेंगे ।

मन्द मन्द वो मुस्कायेंगे, मन में अद्भुत ललक उठेंगी,
प्यार के हर क्षण, अहसासों से ही, आँखें चमक उठेंगी,
तुम बार बार मिलने को उनसे, फिर पागल हो जाओगे,
जन्म जन्म के अनुबन्धन को, खुद व्याकुल हो जाओगे ।

अगर आप, अपनी नव पीढी से, करते हो सच्चा प्यार,
हर उत्सव, वैलेन्टाइन पर दें, पुष्पित पोंधों का उपहार,
साथ समय के सबके ही घर, मनहर उपवन बन जायेंगे
सतरंगी तितली, फूलों से, सबके घर आँगन सज जायेंगे ।

तरह तरह के फूल खिलेंगे, जो जग, उपवन महकायेंगे,
भँवरे, रंग बिरंगे पक्षी आकर, मोहक, गीत मधुर गायेंगे,
ऐसे मनमोहक पल, छिन तो, तेरे सब अपनों को भायेंगे,
शायद तेरी दृष्टि परिधि से, जो कभी दूर ना जा पायेंगे ।

फूल, कली देने से, धीरे धीरे, इन का, अस्तित्व मिटेगा,
पौधे देने से उनका अपना, सबका ही अस्तित्व बचेगा,
और निश्चित हम सबका ही, स्वस्थ जीवन, वंश चलेगा,
वायु प्रदूषण जनित रोग का, फिर न कोई दंश मिलेगा ।

पुनः नई पीढ़ी से अनुरोध हमारा, प्लीज कर लीजे स्वीकार --
पुष्प, कली की जगह दीजिये, पुष्पित पौधों का उपहार !
पुष्प, कली की जगह दीजिये, पुष्पित पौधों का उपहार !!

या फिर तुम अपनाना, दूजा यही विकल्प,
महत्त्व कभी जिसका, नहीं आंकना अल्प –

वैलेंटाइन संकल्प यही लो, कत्ल हो, फूलों का अब बन्द,
और खूब रिझाओ परम प्रेयसी, लिख कर, कविता, छन्द,
मित्र देख ले, भावों की अभिव्यक्ति, और शब्दों का जादू,
तेरे पीछे दौड आयेगी, तेरी प्रेयसी, हो कर बेसुध, बेकाबू ।

एक बार आजमाइश कर लो, मिनिट लगेंगे चन्द,
आगोश में तेरे सिमट जायेगी, करके आँखें बन्द,
करे समर्पित,नयनों की मदिरा,यौवन का मकरन्द,
क्षुधा तृप्ति संग तुम्हें मिलेगा, दिव्य, परम, आनन्द,
फूल, कली को भूल, लिखोगे, प्यार भरे रस छन्द,
आतुरता की अनुपम सिहरन, कभी न होगी मन्द ।

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