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ये कविता सन 1996 में लिखी थी जब ताज महोत्सव, आगरा में पीनाज़ मसानी की गजलों का प्रोग्राम था और उसके बाद उनके कैप्सटन सिगरेट के विज्ञापन के पोस्टर्स उनकी फोटो के साथ जगह जगह लगे थे कुछ ऐसा ही स्लोगन था " हर कश में दम, कैप्सटन के संग ". आज वह पोस्टर तो नहीं ढूंढ पाया लेकिन कुछ पाठक गण को अवश्य याद होगा. खैर वैसा ही एक अन्य पोस्टर जो 1950 में कम्पनी ने कहीं प्रयोग किया था, मैंने ऊपर दिया है। आशा है यह रचना आपको पसंद आयेगी। आज विज्ञापन में नारी अनिवार्य हो गयी है, जिसके दम पर कंपनियों की गारन्टेड आय हो रही है।

महिलायें, पुरुषों को,
अपने हुश्न औ' अदा से लुभातीं हैं,
दीवाना बनाती हैं,
इनकी कमजोरी का फायदा उठातीं हैं,
उंगलियों पर नचातीं हैं,
और पुरुषों की अपेक्षा,
बहुत जल्दी जन जन में,
पोपुलर हो जातीं हैं,
पुरुषों से ज्यादा कमातीं हैं,
विज्ञापन की दुनियां में,
तहलका मचातीं हैं,
इन्हीं हथकण्डों से,
ये मल्टी नेशनल कम्पनियां,
अपनी बिक्री बढातीं हैं ।
अरे पीनाज मसानी को ही देखिये,
कल तक तो,
ताज महोत्सव जैसे,
बडे बडे स्टेज पर ही,
गजलें सुनाती थीं,
क्या गजब मुस्कुरातीं थीं,
अपने हुश्न का दीवाना बनातीं थीं,
लेकिन आज -
हर गली कूंचे में,
पोस्टर्स पर,
हर दम बडे जोश के संग,
कैप्सटन (Capstan) की सिगरेट पिलातीं हैं,
प्रदूषण रोकने के बजाय,
प्रदूषण फैलातीं हैं,
कभी ना पीने वाले भी,
उनके हुश्नों शबाव में,
इतना खो जाते हैं कि -
पैकिट पर लिखी,
वैधानिक चेतावनी भी,
पढना भूल कर,
' चेन स्मोकर ' बन जाते हैं ।
अगली बार कैप्टन सिगरेट वाले,
इस प्रकार अपनी बिक्री बढायेंगे,
कि -
नई नई हसीनाओं की,
हसीन तस्वीरें,
पोस्टर पर नहीं,
सिगरेट के पैकिट पर ही छपायेंगे,
जिसे देख कर,
हर मुरझाया चेहरा खिल जायगा,
खुले आम खरीद कर,
फूला नहीं समायेगा,
दिल के करीब वाली जेब में रख,
सीने से लगायेगा,
प्यार से सहलायगा,
सन्तुष्टि पायेगा,
और धुआं उडाते हुए,
उनके हसीन ख्वाबों में खो जायेगा,
जब चाहेगा, नई ले आयेगा ।
अब कोई भी पत्नी, पति से,
न कलह करेगी,
न कोसेगी, ना लडेगी,
और तो और,
किसी सौतिया ढाह से नहीं मरेगी,
बीवी, बच्चों के दिल, घर,
टूटने से बचेंगे,
क्योंकि -
दर दर भटकने वाले,
नये नये पैकिटों पर छपी,
नई नई हसीनाओं के साथ,
घर पर ही मिलेंगे ।
कम्पनी वाला फ्री में,
हसीन तोहफा दिलायेगा,
पीने वाला उसकी बिक्री बढायेगा ।
विज्ञापन चाहे हो,
पुरुषों के अंडर गारमेंट्स का,
'शेविंग रेजर' या 'जैल ' का,
लेकिन सम्बल पाता है केवल,
नारी की कमनीय देह का। 

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