Photo by Kato Blackmore 🇺🇦 on Unsplash

विष्णु जी से जा मिला, एक पत्नी पीड़ित वर्ग,
कहने - " पत्नी ढा रहीं, पतियों पर उपसर्ग,
पतियों पर उपसर्ग, यहाँ स्वर्ग में आप रह रहे,
तुम्हें पता क्या, हम पति, क्या क्या जुल्म सह रहे?
मुक्ति वास्ते हम को भी, कोई युक्ति सुझाओ,
यदि संभव हो, कुछ पल को, बाहर आ जाओ।"

लक्ष्मी जी से, आज्ञा ले, विष्णु जी आये,
हमें लगा वह, खुद भी बहुत, तृषित घबराये,
बोले - " पता नहीं क्या, तुम्हें दूर के ढोल सुहाने,
तुमसे मिलने आया, वहां बना कर, बहुत बहाने,
नहीं स्वर्ग में पत्नी का संग, खाना किशमिश, पिस्ता,
पृथ्वी ग्रह से ज्यादा मुश्किल, पति पत्नी का रिश्ता,
तुम तो बहुत सुखी पत्नी को, जब चाहो लो डांट,
पर मैं अपना दुख भी तुम से, नहीं सकूंगा बाँट।”

सुनो - " साप्ताहिक पत्नीव्रत, श्रद्धा से अपना लो,
प्रतिदिन, ‘ पत्नी पग पूजा ’ का, नियम बना लो,
और पत्नी का आदेश, कभी मत कल पर टालो,
फिर गृह लक्ष्मी की कृपा होय तो, मुक्ति पा लो,
लगातार कर, एक साल तक, फिर भी ना हो अन्त,
तो बाँध लगोंटी, छोड़ छाड़ सब, बन जाना तुम सन्त।”
हमने पूंछा - "पत्नी पूजा, व्रत का, क्या है विधि विधान?”
“थाम ये कैसेट, सुन लेना ” कह कर, हो गए अन्तर्ध्यान।

अरे दुखी क्यों, हश्र देख कर, अपनी इस अर्जी का,
तीन लोक में, कहीं नहीं है, पति मालिक मर्जी का।

.    .    .

Discus