युद्ध के विध्वंश की बस, कुछ निशानी देख कर ही,
हम बहुत व्याकुल, व्यथित और भावविह्वल हो गये हैं,
हीरोशिमा, नागासाकी, ‘ट्विन टावरों’ की कल्पना से,
ये मन बहुत बोझिल हुआ और नयन सागर हो गये हैं।
युद्ध के विध्वंश की...
परमाणु बम की विभीषिका से, तृषित जब दुनियां हुई थी,
तब स्थापना, विश्व शांति हेतु, संयुक्त राष्ट्र संघ की हुई थी,
फिर आज क्यों विश्व शान्ति के, उद्देश्य निष्फल हो रहे हैं ?
युद्ध के विध्वंश की…
सोचिये क्यूँ, युद्ध इतने, हो चुके, और अब भी हो रहे हैं ?
कैसे निरन्तर, षड़यंत्र कुछ के, अब भी सफल हो रहे हैं ?
जिनके कारण, निर्दोष कितने, काल कलवित हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की...
‘हम बहुत विकसित हुए हैं’, ऐसा लोग कहते, मानते हैं,
पर युद्ध की विभीषिका का, सच लोग कम पहचानते हैं ?
क्या सर्वांगीय आधुनिक विकास के, युद्ध मानक हो गये हैं ?
युद्ध के विध्वंश की…
कुछ डरा, सैन्य अड्डे अपने बना, युद्ध को उकसा रहे हैं,
कुछ विस्तारवादी नीतियों को, स्वार्थ वश अपना रहे हैं,
क्या सैन्य सामान बेचना ही, व्यवसाय उन के हो गये हैं ?
द्ध के विध्वंश की…
आतंक, बर्बरता जिस तरह से, आप बचपन से सिखाते,
फिर ‘ब्रेन वाश’ कर के उनका, आत्मघाती सेना बनाते,
आस्था, आतंक, षड्यंत्र जिन के, विध्वंशकारी हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
आतंकवादी संगठन, हमास, हूती और हिजबुल्लाह मिले हैं,
आतंक प्रायोजक देश भी सब, खुल कर गले, इनसे मिले हैं,
आतंकवादी, इनके शह, सहयोग से, शक्तिशाली हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
अत्याधुनिक विध्वंश के हथियार भी, आज इनके हाथ में हैं,
आधुनिक सुविधा संपन्न, सुरंगें, बंकर भी, इनके पास में हैं,
आतंकवादी विश्व के, आधुनिक, भगवान ही अब हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
मानव सृजित तकनीक का, उपयोग, मानवहित में नहीं अब,
सर्वाधिक उपयोगिता, विध्वंशकारी, कृत्यों में ही, हो रही रत,
खड़े अन्तरिक्ष तक अनेकों, आधुनिक दैत्य, दानव हो गये हैं।
युद्ध के विध्वंश की…
दौड़ अन्धी मच गई है, अत्याधुनिक विध्वंश की, तकनीक की,
यांत्रिक बुद्धि, उपयोग करना, उत्कृष्टता है, मानवीय सोच की,
चेतना, संवेदनायें मर चुकीं हैं, हम पाषाणी, पिशाची हो गये हैं।
युद्ध के विध्वंश की…
मानव मन से मर चुकी है चेतना, और मर चुकीं संवेदनायें,
लुप्त हो चुकीं हैं सहयोग, समझौतों की वे अनुपम भावनायें,
अब इन्सानी दिल धड़कते नहीं हैं, क्योंकि पत्थर हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
लोग, बीज अपनी स्वार्थ लिप्सा के, निर्भीक होकर बो रहे हैं,
जिसके कारण युद्ध प्रतिदिन, और भीषण, भयंकर हो रहे हैं,
लोग, अपनी महत्वाकांक्षा, वर्चस्व के ही, अहंकारी हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
यद्यपि, यथासम्भव युद्ध रोकने के, प्रयास भी करते रहे हैं,
पर झूठे दम्भ और वर्चस्व भाव, बाधक सदां बनते रहे हैं
सच यही, आधार ही सदभावना, सौहार्द के गुम हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
यदि यू एन ओ, विश्व बन्धुत्व भाव का, विश्व में संचार करता,
तो विश्व एक परिवार बनता,न मन में संहार का भाव भरता,
स्वार्थ, वैमनस्य, वीटो भी, युद्ध के आधार अब तो हो गये हैं।
युद्ध के विध्वंश की…
आओ, ऊर्जा, सामर्थ, प्रतिभा, सोच, मिल कर इनका बदलें,
जिससे ये सभी, आतंक छोड़ें और, मानवता सांचों में ढल लें,
आइये ह्रदय परिवर्तन उनका करें, जो विध्वंशकारी हो गये हैं ।
युद्ध के विध्वंश की…
अब तो लोग बहुत कुपथ तज कर, सुपथगामी हो रहे हैं,
है सुखद मुस्लिम देशों में भी, अब भव्यमंदिर बन रहे हैं,
विश्व शान्ति हेतु, लोग राम से ही, अब प्रभावित हो गये हैं।
युद्ध के विध्वंश की…
प्रभु रामराज्य स्थापित हुआ, अब सबसे पहले यही करिये,
युद्ध जितने हो रहे हैं, पहले बस उन्हें, विश्व से ख़त्म करिये,
युद्ध के विध्वंश से, विश्व के जन, व्यथित, व्याकुल हो गये हैं।
शान्ति हेतु, आप में विश्वास रख, सभी पूर्ण निश्चिंत हो गये हैं।।
युद्ध के विध्वंश की…
युद्ध के विध्वंश की बस, कुछ निशानी देख कर ही,
हम बहुत व्याकुल, व्यथित और भावविह्वल हो गये हैं,
हीरोशिमा, नागासाकी, ‘ट्विन टावरों’ की कल्पना से,
ये मन बहुत बोझिल हुआ और नयन सागर हो गये हैं।