हमारे बीच सब कुछ बे-शुमार हो गया
जैसे पूरे रोज़े के बाद अफ्तार हो गया
उससे नज़रें भी अभी मिली नहीं मेरी
बस एक मुस्कान मेरे दिल के पार हो गया
उसकी सूरत से रूबरू ना हुआ मैं
मुझे उसके सीरत से ही प्यार हो गया
वैसे तो किसी से दिल ना लगा मेरा
पर यहाँ मेरे दिल का हार हो गया
लाखों शहजादियाँ हैं इस जहाँ में फ़राज़
क्यों उसके मुस्कान पर तू निसार हो गया..?
उसपर नज़रें ना ही परतीं तो अच्छा था
खामखाँ तेरा भी इश्क़ का कारोबार हो गया
उसकी कस्ती शायद किसी और दरिया में बहती है
अब तू उसके लिए क्यों पतवार हो गया..?
वह मान जायेगी इसी चक्कर में तू भी
इश्क़-ए-इज़हार के लिए तैयार हो गया
आजमा ले अपनी क़िस्मत बस एक बार
बोलने से पहले ही तू क्यों बेज़ार हो गया
क्या, क्या कहा तूने, वह मान गई
जनाब यह तो चमत्कार हो गया...!