किसी के घर का चिराग सोया है,
तो किसी ने अपने सिर का ताज खोया है,
आखिर आज फिर किसी को बहते अश्कों ने भिगोया है।
बेटी थी वो पिता की परी,
नहीं देखी थी दुनिया दरिंदगी से भरी,
आँखों में सपने लेकर जीवन में थी उड़ान भरी,
लेकिन शिकार हो गई दरिंदों का,
फिर एक बार उस पिता की परी।
हैवानियत से भरी है दुनिया,
इंसानियत का नहीं कहीं नामो-निशान है,
दरिंदगी है पल पल बढ़ जा रही,
क्योंकि कलियुग का अंधा इंसान है।
फिर किसी ने जीवन में खिले कमल को खोया है,
फिर किसी ने घर की चहल-पहल को खोया है,
फिर किसी ने दरिंदगी से अपनी ज़िंदगी को खोया है,
आखिर एक बार फिर किसी को बहते अश्कों ने भिगोया है।
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