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नमस्कार मैं अनिमेष , किशोर हूं। मैं और अन्य किशोर, हर एक किशोर, चाहे वो परीक्षा में अव्वल आने वाला या परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाला किशोर हो, चाहे वो खेल, कला, साहित्य, आदि में पारंगत या काला का ककहरा न जानने वाला किशोर हो, सब एक तरह की परेशानी से जुझ रहे हैं, वो है अंदेखापन, भविष्य की अनिश्चितता, मनोदसा में बदलाव, खुद को खुद से और समाज से दूर पाना , खुद को उन्मादी पाना या जीवन के प्रति खिन्नता।

लेकिन आपके मन में ये विचार कौध रहा होगा की ये टैबू कैसे हुआ , ये तो अन्य टैबूओ से अलग है । ये टैबू इसीलिए है, क्योंकि किशोरावस्था जीवन की सबसे उपेक्षित अंग है , कोई भी किशोरावस्था और उसकी परेशानियों पर बात नहीं करना चाहता है, भले ही इंटरनेट और अखबारों में किशोरावस्था पे मनोवैज्ञानिकों द्वारा अनेकों लेख छपे हो लेकिन अंततः , समाज इसे बात न करके समाज इसको टैबू बना रहा है , और समाज का किशोर अकेला होकर रह जाता है।

जीवन की हर अवस्था , चाहे वो बचपन वयस्क था या फिर बुढ़ापा हो सबको मनुष्य उत्सव की तरह जीता है। माता - पिता अपने बच्चों के बचपन को उत्सव की तरह जीते हैं वयस्क अपनी रूप से और अंततः जीर्ण अवस्था वृद्धावस्था को लोग यह कहकर उत्सव मनाते हैं की उन्होंने अपना पूरा जीवन सुखद रूप से पूर्ण कर लिया।

लेकिन लेकिन किशोरावस्था जब आती है तो सब चुप्पी साध लेते हैं हम किसी भी विषय पर अपने माता पिता से बात करते है तो उनके तरफ से सिर्फ एक ही जवाब आता है ," तुम अभी पढ़ लो , तुम्हारे पढ़ने की उमर है "। जबकि जीवन में पढ़ाई एक छोटा सा अंग है , जिसकी आड़ में हमारी भावनाओं को दबाया जाता है। जबकि ये जीवन का वो दौर है जब हमारे बड़ो को हमारे साथ खड़ा होना चाहिए, मानसिक रूप सुद्रीण करना चाहिए।

इन्ही सब कारणों से आज कल के किशोर स्वयं को अकेला जीवन में हारता हुआ पाकर आत्महत्या कर लेते हैं। उन्हें देहत्याग ही अंतिम रास्ता नजर आता है।

अंततः मैं इस लेख से यही सुनिश्चित करना करना चाहता हु की माता पिता और समाज को किशोरों के साथ समय व्यतीत करना चाहिए , उनकी बातो को सुनना चाहिए और सकारात्मक प्रतिक्रिया देनी चाहिए। यही एक मात्र तरीका है, जिससे कम उम्र में होने वाली आत्महत्याओं को रोका जा सकता है।

धन्यवाद...

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