योगिनी शर्मा।

परिचय,

संगीत एक उर्जा है और यह समस्त जगत नाद के अधीन है, अर्थ संसार में ना जाने कितने प्रकार की ध्वनिया हैं और नाद है, नाद जो एक शब्द है जो संस्कृत भाषा में बोला जाता है, कहा जाता है की संसार नाद के अधीन है, जब हम मुंह से बोलते हैं तो वह वाणी निकलती है, जो कि मनुष्य निकाल सकते हैं क्योंकि वाणी मैं शब्द होते हैं। पक्षी ध्वनियां निकाल कर बात करते हैं, पक्षी और जानवर ध्वनियां समझते हैं।मनुष्य ईश्वर की बहुत रचनात्मक रचना है क्योंकि, मनुष्य औरों से भिन्न है वह संसार के परे जाने की चैतन्यता रखता है वह, ध्वनि और वाणी दोनों निकाल सकता है। जिस तरह पृथ्वी पंच भूतों से बनी है, वैसे ही मनुष्य का शरीर पंच भूतों से बना है। जिस तरह ब्रह्मांड की रचना है, उसी तरह शरीर की रचना है। वाणी निकालने के लिए पंच भूतों में से अग्नि और वायु अहम भूमिका होती है, अग्निवायु हदय से होकर कंठ तक आती है और मुख से निकलती है। उसी तरह अगर दो व्यक्ति आपस में बात करते हैं तब भी वायु की अहम भूमिका होती है, वायु वाणी और ध्वनि को एक से दूसरे व्यक्ति तक ऐसे पहुंचाती है, जैसे हम कान से कान लगाकर सुन रहे हो। ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ ध्वनि ना हो अंतर्मन में भी और बाहर भी, पृथ्वी में भी और ब्रह्मांड में भी ध्वनि है, मौन की भी अपनी एक ध्वनि है। मनुष्य जब ध्यान में होता है तो वह ध्वनि को और बारीकी से सुन पाता है जो वह जागकर नहीं सुन सकता। नाद, ध्वनि और संगीत वह है जो ध्वनियों या वाणी से मिलकर बनता है। या किसी यंत्र से निकली ध्वनि जो सात सुरों से बनती है। यंत्र जैसे डमरु, बांसुरी, वीणा, ढोल, घंटी और भी कई प्रकार के यंत्र हैं जिनकी अपनी ध्वनि है। ध्वनि को निकालने के लिए भीतर वायु और बाहरी वायु की आवश्यकता होती है। वायु संगीत को सभी दिशाओं में और सभी के कानों तक ले जाती हैं। संगीत का बड़ा गहरा प्रभाव है, मनुष्य से लेकर समस्त जीव पर और संसार पर। ध्वनि की अपनी उर्जा है वह मधुर बनकर सकारात्मक होती है तो, कभी तीव्र होकर नकारात्मक भावनाओं को जन्म देती है। जैसे ध्वनि या संगीत बजता है मनुष्य उससे प्रभावित होता है। संगीत भावनाओं को प्रभावित करता है, संगीत उत्साह, ऊर्जा को बढ़ाता है। सुख, दुख, खुशी, क्रोध, जागना, सोना, प्रेम, ईर्ष्या, हार, जीत हर तरह की भावनाओं को प्रभावित करता है। संगीत मनुष्य के मन को और शरीर को ऊर्जा से भर देता है और उस उर्जा से नृत्य उत्पन्न होता है। संगीत पैरों को अपने आप उठा देता है जो नृत्य नहीं भी जानते हो, फिर भी उनके शरीर संगीत और मधुर ध्वनि सुनकर अपने आप थिरकने लगता है। सिर्फ मनुष्य नहीं संसार के समस्त जीव और जीवन संगीत, ध्वनि और नाद से प्रभावित हैं। संगीत ने पेड़ों से पत्तिया तक, पक्षी से जानवर तक, हर निर्जीव से लेकर जीवन तक, को प्रभावित किया है। हम ध्वनि, वाणी मुख से बाहर निकाल सकते हैं और दूसरे उसे सुन भी सकते हैं वैसे ही, हम अपने मन में ध्वनि और वाणी बोल सकते हैं जो दूसरे सुन नहीं सकते ।जब हम मन में बोलते हैं तो, हम अपनी जीभ नहीं हिलाते और मंत्रों की मदद से ध्वनि और वाणी बिना जीभ, होंठ हिलाए बोल सकते है। यह इसलिए संभव है, क्योंकि हमारे अंदर पंचभूत है और बाहर भी पंचभूत है। उनकी मदद से संसार के समस्त प्राणियों से बात कर सकते हैं। अंदर के पंच भूत की मदद से भीतर की ओर ध्वनिया निकाल सकते हैं।

संसार में इंद्र जो पंच भूतों का राजा है, वैसे ही हमारे शरीर में मन (इंद्र) है और पंचभूत कर राजा मन है जैसे इंद्र समस्त सूर्य, पृथ्वी, ब्रह्मांड की देखरेख करता है। उसी तरह हमारे मन हमारे अंदर के सूर्य, पृथ्वी, अग्नि सभी तत्वों की देखरेख करता है।पंचभुतो इंद्र की आज्ञा से चलते हैं वैसे ही, मन हमारे शरीर पर राज करता है। इंद्र से आगे और परे ईश्वर है। ईश्वर जिससे हमारी आत्मा जन्मी है। हमारे शरीर और मन की रचना ब्रह्मांड और संसार से जुड़ी है, पर हमारी आत्मा परमात्मा ईश्वर से निकली है। मन(इंद्र) हमें संसार से जोड़े रखता है, पर आत्मा हमें संसार से परे ले जाती हैं मोक्ष की ओर, और संगीत शरीर के साथ आत्मा पर भी गहरा प्रभाव डालता है। भारतीय संस्कृति में संगीत महत्वपूर्ण बताया गया है संगीत का प्रभाव शरीर के साथ आत्मा पर पड़ता है,और शरीर के चक्रों को सक्रिय करता है एक उच्च स्तर पर या ऐसा कहा जा सकता है कि आध्यात्मिक की ओर ले जाता है।

धन्यवाद।

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