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राधा अपने बेटे कश्यप के साथ एक छोटे से घर में रहती हैं। घर में एक रसोई घर और एक कमरा है जिसमें, सिलाई मशीन है। स्वभाव में सरल और मुख पर मुस्कान रखने वाली राधा, अपने घर को अपनी सिलाई मशीन की कमाई से चलाती है। जिस जगह राधा रहती है, वह वैसे तो कई धर्म के लोग हैं पर, क्रिश्चियन लोग अधिक है और वहां पर एक नया गार्डन बना हैं, जहां पर इस बार क्रिसमस ट्री की सजावट की तैयारियां हो रही है और राधा अपने घर में गुनगुना कर भोजन की तैयारी कर रही है और सोच रही है की शाम के 4:00 बज रहे हैं और 5:00 बजे तक भोजन बना कर रख देती हूं और फिर कश्यप के लिए स्वेटर बुन लेती हु और स्वेटर को पूरा बनने में मुझे एक घंटा और लगेगा यह सोचते हुए राधा भोजन बनाना शुरू करती है और भोजन बनाते हुए गुनगुना रही है। वहां उनका बेटा कश्यप आया कश्यप जो अब छ: वर्ष का हो गया है और कई दिनों से हलचल और सजावट से भरे गार्डन को देखकर कश्यप के मन में कई सवाल उठते हैं। जो अपनी मां से पूछना चाहता है। मम्मी सब क्यों सजा रहे है? गार्डन को। मम्मी बहुत सारे बच्चे और अंकल आंटी क्यों है? मम्मी वहां क्या हो रहा है? नए कपड़े क्यों पहने हैं? कश्यप के इतने सवाल पर उसकी राधा मुस्कुराई, और कहने लगी आज क्रिसमस का दिन है। जैसे:- हम दीपावली मनाते हैं वैसे ही किस्मत का दिन भी मनाया जाता है। दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं, वैसे ही क्रिसमस पर रंगीन रोशनी जगमगाती है। दीपावली पर लक्ष्मी पूजा करते हैं, वैसे ही चर्च में प्रार्थना की जाती है। दीपावली पर मिठाईयां संजोरी बनती है, वैसे ही क्रिसमस के दिन केक बनाते हैं। दीपावली पर एक दूसरे को संजोरी मिठाईयां बांटते है उसी तरह, क्रिसमस पर तोहफे बैठते हैं। 

क्रिसमस पर ईश्वर खुद सांता बनकर बच्चों की इच्छा पूरी करते हैं, ऐसा कहा जाता है। क्रिसमस क्रिश्चियन धर्म के लोगों की दीपावली है। राधा की बातें खत्म हुई थी, कि फिर एक सवाल पूछा कश्यप ने, मम्मी क्या मेरी भी इच्छा पूरी होगी? राधा ने मुस्कुरा कर कहा:- कश्यप मांग कर देख लो। कश्यप आगे कुछ पूछता कि, उसके छोटे-छोटे दोस्तों ने आवाज लगाई, तो कश्यप जल्दी से दरवाजे के पास खड़ा हो गया और दोस्तों को, अभी जो मां से सुनी क्रिसमस के बारे में बातें बताइ और दोस्त कहने लगे चल कश्यप क्रिसमस ट्री से विश् मांग कर आते हैं। कश्यप को रोकते हुए राधा अपने आटा लगे हाथों को साफ करती हैं और रंग बिरंगी कपड़ों से बना रुमाल कश्यप के कानों पर बांध देती हैं ।( सिलाई के बाद जो कपड़े बचते तो अपने बेटे कश्यप के लिए और कुछ न कुछ बना लेती हो।) और कश्यप से कहने लगती है, कश्यप अंधेरा होने से पहले घर आ जाना, बाहर ठंडी हवा चल रही है, और ठंडी बढ़ रही है।कश्यप तुमने बारीक कपड़े पहने जो ठंड को रोक नहीं सकते हैं, घर जल्दी आना। ( एक वजह यह भी थी, कि राधा कई दिनों से अपने बेटे कश्यप के लिए स्वेटर बुन रही है और आज वह पूरी होने वाली है, राधा अपने बेटे कश्यप को तोहफा देना चाहती है।) कश्यप के जाते ही फिर वापस अपने काम में लग गई। भोजन बना और फिर राधा ऊन लेकर स्वेटर बुनने लग गई। स्वेटर बुनते समय आंखों में प्रेम, होठों पर मुस्कान थी।( मां ऐसी होती है बिना स्वेटर के बैठी है और बच्चे की स्वेटर बनते देख जैसे उन्हें खुद को राहत मिल रही है।) राधा की नजर खिड़की के बाहर लगी रोशनी पर गई तो उन्हें दीपावली का दिन याद आया, कि कश्यप कितनी फिक्र से कह रहा था,मम्मी शाल उढ लो। बार-बार एक वाक्य को दोहरा रहा था।

दीपावली की साफ सफाई में दिन से रात हो गई और राधा भिग चुकी थी। सारे बर्तन कपड़े धोने से और ठंडी हवा की वजह से शरीर कप कपा रहा था। कश्यपयये देखकर फिक्र करता हुआ,शॉल उढने को कहने लगा। राधा ने अपनी साड़ी बदली, शॉल राधा पास थी नहीं तो राधा रसोई घर में बैठी गई।

कश्यप के लिए दूध गर्म करने। कश्यप जल्दी से अपना छोटा सा रुमाल मां के इर्द-गिर्द डाल दिया, और गले से लग गया। यह स्नेहा देखकर राधा की आंखों में प्रेम भर गया।( राधा ऐसा ही तो करती थी,जब कश्यप को ठंड लगती है तो वह जल्दी से उसे अपनी गोद में बैठा कर, अपने आंचल से ढक कर, सीने से लगा लेती और गीत गाती “ठन ठन ठन ठन क्या करते हो ठंड  क्या तुम्हें खाती है, लकड़ी जैसे पड़े रहो, ठन तो तुम्हारे ऊपर से उड़ चली जाती है”।) राधा अपने प्रेम से भरी आंखों से, कश्यप की ओर देखकर मुस्कुराई, उसे अपनी गोद में लोरी गाते हुए सुला दिया और अगले दिन दीपावली की सिलाई से जब पैसे आए थे। कुछ पैसे स्कूल की फीस भर दी, कुछ से घर का राशन और ऊन खरीदा था, बेटे की स्वेटर के लिए। ₹200 बचे थे उसे पत्ती के डब्बे में रख दिये, ना जाने कब जरूरत पड़ जाए। पटाखे की आवाज से खयाल से बाहर आई और कश्यप की स्वेटर बुनने लगी। घड़ी कि ओर देखा अब 7:00 बज चुक थे। अब राधा की निगाहें कश्यप की राह देख रही थी और कश्यप तो सजावट से नजर ही नहीं हटा रहा था। गार्डन के चारों ओर रंगीन रोशनी और पेड़ की सजावट कश्यप का मन मोह रही थी। कश्यप तो अपनी विश् मांगना तक भूल गया और एक तरफ बैठकर वह क्रिसमस पेड़ को देख रहा था। कश्यप की आंखों में चमक थी, होठों पर सुकून से भरी मुस्कान थी। 

कश्यप की आंखों की चमक पर एक औरत की नजर रुक गई। कश्यप का मासूम सा, मुस्कुराता चेहर, चमकती आंखें और ठंडी हवा में कापता हुआ सा बच्चा, जिसने स्वेटर नहीं पहनी है। पर सजावट देखने में ठंड का एहसास नहीं है।( बच्चे जब भी खेल में या किसी भी बस तू अपना ध्यान लगाते हैं तो उन्हें ठंडी गर्मी का एहसास नहीं होता, वे धूप में भी उतनी उत्साह से खेलते हैं।) यह देख कर उस औरत के मन में प्रेम,दया और स्नेहा से भर गया। कश्यप के पास जाकर अपनी ओढ़ी हुई शॉल, उसे उढादी। कश्यप ने औरत की और देखा उसके मुख पर मुस्कान थी और कश्यप के मुख पर हैरानी! कश्यप हैरानी में ही था कि, वह औरत बोली:- क्रिसमस का तोहफा और मुस्कुराए, उनकी मुस्कुराहट देखकर कश्यप को मां की याद आई, बिना धन्यवाद कहे, मां के पास आया। राधा इधर कश्यप की राह देख रही थी। कश्यप का आते देख, जल्दी से हाथों में पकड़ी स्वेटर पीछे कर ली। कश्यप को शॉल ओढे देखा तो, पूछा शॉल किसकी है, तो कश्यप ने कहा:- मां तोहफा है। एक आंटी ने दिया, जो बिल्कुल तुम्हारी जैसी थी। मां ने मुस्कुराते हुए कहा, एक तोहफा मेरे पास भी है तुम्हारे लिए। स्वेटर को सामने रख दी, कश्यप का मुस्कुराता चेहरा देख, राधा के मन में सुकून और मुख पर मुस्कान थी। राधा ने कश्यप को गले लगाया और मन ही मन उस औरत और ईश्वर को धन्यवाद दिया।

मुस्कुराहट में तोहफे देते हैं या एक दूसरे को तोहफे में मुस्कुराहट देते हैं।

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