भारतीय संस्कृति की यह एक विशेषता है कि यह किसी एक व्यक्ति की अर्न्तयात्रा में प्रस्फुटित सत्य (धर्म) नहीं हैं बल्कि हजारों-लाखों ऋषि-पमुनियों #ी साधना-तपस्या द्वारा: अंकुरित विज्ञान संम्मत (धर्म) सत्य का संकलन है भारतीय संस्कृति । आदि शंकराचार्य का सूत्र 'ब्रहम सत्य, जगत मिथ्या' एक अनुभूति जन्य सत्य हैं। इसको पलायन वादी सिद्धान्त कहकर बाबा रामदेव ने एक विवाद को है| जन्म नहीं दिया बल्कि संत समाज को यह भी अवगत करा दिया कि अभी उनकी अध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ होना शेष है। बाबा रामदेव को यह स्मरण हहीं रहा कि आदि शंकराचार्य ने 40 वर्ष की अल्प आयु में सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया एवं पूर्व-पश्चिम, उत्तर-देक्षिण में पांच भठों का निर्माण कराकर सस्कृतिक रूप में भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधने का महान कार्य किया था।

बाबा तुलसीदास ने भी रामचरित मानस में लिखा है कि 'सत्‌ हरि भजन जगत एक सपना! बाबा तुलसीदास के लिए भारतीय समाज में विशेषकर साहित्यिक जगत में यह मान्यता हैं कि जिस समय मुगलों के अत्याचार से हिन्दु समाज गअाहि-ब्राहि कर रहा था ऐसे समय मेँ तुलसी ने हुलसी क॑ गर्भ से जन्म लेकर हिन्दु निष्याण जाति में प्राण फूंक दिया था। बाबा तुलसीदास ने हजारों की संख्या में व्यायामशालाओं - अखाड़ों का निर्माण कराकर उसमें हनुमान जी की मूर्तियों की स्थापना करायी थी जहाँ लाखों नवयुवर्कों ने शरीर सौप्ठव पर ध्यान देकर शक्ति का अर्जन किया था।

भगवान शिव ने गुरु गीता में कहा है कि,

गृढ़ा विद्या जगन्माया देहाश्चा ज्ञान सम्भव: ।
विज्ञान॑ यत्प्रसादेन गुरु शब्देन कथ्यते ।।

अर्थात्‌ अविद्यारूपी माया के प्रभाव से यह शरीर उत्पन्न हुआ है। माया स्वयं यह चाहती. है “कि: मनुष्य अपने शरीर का ज्ञान प्राप्त करें ताकि सृष्टि लीला यथावत्‌ चलती , रहे हठ-योग एक शरीर विज्ञान है, बाबा रामदेव भी एक ऋषि हैं। उन्होंने' हठ-योग पर शोध कर मनुष्य की शारीरिक व्याधियों का निदान कर उसे एक स्वस्थ्य व्यक्तित्व प्रदान करने का महान संकल्प लिया है' जिसमें वे सफलतम भी कहे जा सकते है। बाबा ने पातंजलि योग पीठ की भी स्थापना की है पातंजलि योग दर्शन का मूल सूत्र “ईश्वर प्राणिधान'' को यदि विस्मरण कर दिया जाग्रे तो. .हठ-योग .एक कर्कट नृत्य मात्र रह जायेगा क्योंकि मनुष्य चाहे जितना. भी योगासन एवं मुद्रायें कर ले वह मृत्यु को अवश्थ प्राप्त होगा और उप्तकी मूल जिज्ञासा 'हम कौन है और मरणोपरान्त इस जीव की क्‍या गति होती है'- अनुत्तरित रह जायेगी।अध्यात्म योग मनुष्य की 'सभी जिज्ञासाओं का समाधान प्रस्तु कर सकने में सक्षम है। अध्यात्म योग के विज्ञान का ज्ञान बेद-शास्त्र एवं पुराणों के अध्ययन से ात् नहीं हो सकता है। यह एक गुरुमुखी विद्या है सतगुरु अपने पात्र शिप्यों को यह विज्ञान प्रदान करते है। हाँ हठयोगी को यदि सतूगुरु की कपा प्राप्त हो जाये तो वह अध्यात्म पथ पर तीब्र गति से प्रयाण करने में सक्षग हो जाता है। हठ योग अध्यात्म योग का सहायक अंग है। इस सम्पूर्ण सन्दर्भ में भारत के महान संत श्री श्री श्यामा चरण लाहिडी का स्मरण करना आवश्यक है जिन्हें अध्यात्म जगत में लाहिडी महाशय के नाम से जाना पहचाना जाता है। कुछ लोग उन्हें शिरडी के साईं बाबा के गुरु रूप में मानते है हालांकि क्रिया योगी. इस सत्य से अवगत है। इन्हीं लाहिडी महाशय ने अपने जन्मांध शिक्ष के सर पर हाथ रखकर नेत्र-ज्योति प्रदान की थी।

लाहिडी महाशय को जब पेंशन. मात्र परिवार के पालन-पोषण में परेशानी होने लगी तो परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया एवं शेष समय साधना की अतल गहराईयों में डूबे रहते। लाहिडी महाशय अपनी साधना जन्य अनुभूतियों को डायरी में लिख लिया करते थे। ऐसी 26 डायरियाँ गोपनीय ही रह जाती यदि महामना, महाप्राण सदगुरु श्री श्री सत्य चरण जी लाहिडी ने पुराण पूरुप लाहिंडी महाशय ब्ले न लिखवायी होती। यह पुस्तक अध्यात्मिक जगत के लिये अमूल्य कृति है। इस “पुराण पुरुष लाहिडी” महाशय ने उन 26 डायरियों को ज्यों का त्यों प्रकाशित कराया गया अत गओ है। जाहिडी महाशय एक स्थल पर लिखते है कि एक लाख कऋ्रक्कणों- से पृथ्वी के एक अणु का गठन होता है। इस तरह उन्होंने बेद वाक्य “ईश्वर सूक्ष्माति सूक्ष्म एवं शून्याति शून्य” को भी सिद्ध कर दिया।

जब कोई जीव साधना के उस स्तर पर पहुंच जाता है जहाँ उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है तो वह संसार की प्रत्येक वस्तु में अरबो-खरबों ब्म्दरणुओं की दृष्टिपातं करने लगता हैं तभी वह कह उठता है कि,

“ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या”!

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