Picture Source: pixabay.com
आवा लईको बैइठा संगे,
चला करल जा कुछ बतकुच्चन।
तनी तू कुछ हमके सुनावा,
तनी कुछ तोहके हम सुनाई।
हमहुं अपने लड़कपन के,
चला कौनो रंग बताई।
अइसे चलत रही कहानी,
सीखे और सीखावे क।
कुछ गांव के हाल सुनाई,
कुछ सावन के मेला क,
कैसे चलत रहे खेला,
अंदर मौत के कुआं क,
लेके दौड़त रहन लईका,
दू चक्का के अइसे मानो,
कौनो जादू के झाडू होखे।
कुछ सुनाई कहानी आम के बगिया के।
कइसन तोड़त रहनी हमनीके,
कच्चा आम के लदल ढेर।
और लगत रहनअ पोकियावे हमहन के
बगिया के बाबा।
चला कुछ खेतन क हाल बताई,
कुछ बैलन क जोताई,
कुछ किसान क मेहनत,
और कुछ दादी अम्मा क प्रेम बताई।
आंही अवते लगे जमावड़ा
ठीक आम के पेड़ के नीचे।
लगे कुद्दे लईका-लईकी,
सुनते आवाज़ टप्प-टप्प के।
केहु एहर चिल्लाए, केहु ओहर
कब्बो गिरे आम कपार पे,
कब्बो गिरे बगलिये में।
रतिया होखते,
लगे भिन-भिनाए मच्छर और किरौना हो।
न रहे जब लाइन,
तब डोलवे लोग बेना हो।
एक बेना के हवा में,
लईका बैइठे कोरा में।
जबले खाना बने क होखे तैयारी,
तबले सुनलजा एक कहानी।
कहानी कुछ करे मनोरंजन,
कुछ सीख सीखावे जीवन क।
एतने में बन जाए खाना,
खूब स्वाद वाला।
सबे बईठे संगे, पालथी मार के।
लेवल जा स्वाद रोटी, अचार और सब्जी के।
हाली से खतम कइके खाना
पहुंचल जा छत्ते पे,
लेके आपन-आपन बिस्तर।
कब्बो-कब्बो होखे झगड़ा
कि के के सुत्ती बीच में और के आरी
लेकिन सुत्ते सब एक्के संगे।
जबले आवे न नींद सुहानी,
होखे तबले तारा गिनाई।
तबले चले लगे हवा पुरवईया,
मंद मंद पर शीतल।
एतने में कब लग जाए नींद,
पता न चले हमहनीं के।
रहे लईको इहे हमार कहानी।