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जागो! प्यारे जागो!

चुनाव का है वक्त आया
चेतन को है जगाने आया
हम सबके अंदर,
अलख प्रजातंत्र की।
वही प्रजातंत्र जिसका उपहास
बनाती है सरकारें,
कभी वोटो का हेर-फेर कर,
तो कभी विधायकों व सांसदों की 
खरीद फरोख कर।
जीतने के होते हैं कई तरीके,
जो जितने ऊंचे पद पर है,
वह उतनी ज्यादा करता है।
कभी मुफ्त की चीजों का लालच दे,
तो कभी विपक्षी नेताओं को जेल भेज।
किसानो की कोई सुनता नहीं।
वह खदेड़े जाते ऐसे,
जैसे वह देश के दुश्मन हो।
अन्नदाता है वों इस देश के,
यह सब भूल जाते हैं।
कोई सरकार विरोधी आवाज निकाले,
तो देश विरोधी हो जाता है।
आखिर समझ में आता नहीं,
सरकार हम चुनते या सरकार हमें।

जवाब मांगना हक हमारा,
मगर जवाब देता है कौन?
सब तो राग अलापते हैं,
अपनी-अपनी बढ़ाई का।
जवाबदेही सबकी है,
पर जवाबदेह नहीं कोई।
सत्ता सबको चाहिए,
किंतु उत्तरदायित्व नहीं किसी को।
पत्रकारिता तो विलुप्त हो चुकी,
जनाक्रोश कहां ही दिखता?
सुधार सबको चाहिए,
किंतु सुधारना है नहीं किसी को।
आवाज उठाओ,
खूब पढ़ो,
और बढ़ाओ देश को।
जब-जब सरकारें अहंकारी हो,
उखाड़ फेंको उनको
और स्थापित करो
एक नई सत्ता
सत्ता जिसमें हो
जन समर्थन।

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