आज चलो हम शुरू करते हैं
एक कथा अपराध की
अपराध? हां, जो क्षम्य नहीं
कुछ ऐसा जो नेत्रों से रक्त की धारा
को कर सकता है प्रवाहित।
कुछ ऐसा जिसमें हो पीड़ा
शारीरिक, आत्मिक और मानसिक।
गाय, गौ ओर धेनु इन सभी नामों से
हम पुकारते हैं उसे
हां वही गाय, हां हां वही गाय
जिसके गवाले हैं कहलाए श्री कृष्ण
वही धेनु जिसने दिए जन्म दो बच्चों को
एक बछिया तो दूसरा बछड़ा
एक जोतता खेत तो दूसरा देती दूध
किंतु स्वार्थी मानवों ने
गाय के बच्चों का दूध छीन
और दिया पीला भरने को पेट अपने बच्चों का
वह रही देखती दूर खड़ी
बड़ी-बड़ी आंखों से
जिसमे तड़प रही थी ममता
अपने बच्चों की देख भूख
पर वह कह न सकती क्योंकि
वह है एक निःशब्द जनावर।
बैल जो हमारे खेतों को हैं
जोतते और उगाते सोने की फसलें।
जिनका गोबर तक है चलाता हमारे घर के चूल्हे
और करता पवित्र द्वार हमारे।
हम मनुष्यों ने भी उसे दिया,
उचित सम्मान उसकी इन महानताओं का।
किंतु अब औद्योगिक युग के समय
में हम सब की मांग जब पड़ती है कम
तो लगा इंजेक्शन गाय को नित्य
हम चूस लेते हैं दूध का
बूँद-बूँद उसकी हड्डियों से,
और जब नहीं रहती
उसकी हड्डियों में भी जान
तो काट कर खोल देते हैं
चमड़ी उसकी
और बना लेते हैं अपने लिए|
वस्त्र और जूतियां।
केवल इतना ही नहीं,
मारने के बाद खा लेते हैं
हम उसके मासं के टुकड़े को
जिसने सीचने के लिए लगा दिया
अपना पूरा जीवन हम सभी को
क्या वह थी इसी की हकदार?
यह हम सभी को है सोचना।