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कितने ही ये कहते, जीवन, 
एक होड़ है आगे निकल जाने की,
कुछ न कुछ पता लेना ही 
इसका एकमात्र लक्ष्य है। 

किन्तु सत्य को छिपा लेने से 
कहाँ काम चलता है,
यथार्थ प्रकट कर देने को 
कवि स्याही भरता है।

एक बार प्रयास मैं करता हूँ 
सुनो गौर से एक गूढ़ सत्य,
पूर्ण संगठित मन से,
कहता मैं...

जीवन एक संघर्ष अवश्य,
किन्तु यह एक यात्रा है।
जीवन एक संकुचित पोखर नहीं, 
यह एक विशाल सागर है।

जिस में है क्षमता वो कर लेता है पार,
जिस में है धीरज वो लगा लेता है गोता,
जिस में है समझ वो है जीवन को जीता,
जिस में हैं घमंड वो जाता है डूब।

कुछ अंकों के बल पर जीता 
जाता न रण, जीवन का।
बेकार ही साहस खोते हो तुम,
एक विफलता हाथ लगने पर।

अरे यारों! अगर प्यास बुझाना है 
तो जागो और डालो ढूंढ,
उस स्वर्णिम प्रतिमा को,
जो तुम्हारे अंदर है बैठा।

जंग लग जाए इस जवानी को 
उसके पूर्व उठो और
फूंक डालो इस रक्त को जीवन सींचने में 
हो कान्ति इस जीवन में तभी मज़ा हैं यारो,

उसके लिए अनुशासन व दृढ़ संकल्प
का साथ चाहिए होता। 
तकनीक, सही दिशा, निरंतर प्रयत्न 
एवं इच्छा शक्ति की रखो लालसा।

यात्रा में क्लांति आती है बार बार 
मगर पुनः युद्ध को जो जाता है 
वही वीर कहलाता है।

बतलाओ मुझे है कौन यहां? 
उठ खड़े होने को उसी भूमि पर,
जिसमें दहक रही है आग 
सब कुछ निगल लेने को। 

उठ खड़े हो ऐ मानव की शिलाओं 
न जाने दो ये मौका,
कर दिखलाओ असंभव को सम्भव 
और बन जाओ एक परमवीर। 

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