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"मुखौटा पहनते हैं लोग यहां"
हर राह पर मिलते हैं शख्स कई,
हर कोई लगता है अपना सा,
वक्त की शुरुआत में।
मिलते हैं आपस में,
लगता है मिले हैं कई बार।
मिलने लगते हैं एक दूसरे के गुण कई,
लगता है सफर बस यही है,
मंजिल तो सामने है कड़ी मेरे,
परंतु वास्तविकता कुछ और ही है।
जब जीना बहुत मुश्किल हो जाता है 'अकेले',
तब वह रंग बदलने लगते हैं;
लेकिन रंग केवल एक ही होता है 'काला'।
अंदर कुछ सा टूट जाता है,
लेकिन सुनाई नहीं देता।
चेहरे पर बस एक ही चीज दिखाई देती है,
सन्नाटा और सन्नाटा।
होते बहुत सारे लोग हैं यहां,
मगर अंदर पूरा खाली सा लगता है।
मिलती है सिर्फ एक चीज 'अवसाद'
एक गहरा अवसाद।
सही कहते हैं-
"मुखौटा पहनते हैं लोग यहां।।"