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आओ तुमको ले चले हम
उन ज़मानों में,
एक चलती टी॰ वी॰ के चक्कर में
पड़ते गांव के पूरे लोग।
शक्तिमान को देखा करते,
ज़ूम ज़ूम की आवाजों में।
वो शरारत, हातिम और
जूनियर जी के आश्चर्यचकित करिश्में।
वो फ्रूटी की परी और
वो जादू की पेंसिल की करामात।
वो श्रीमान और श्रीमती के
किस्से और कहानियां,
करते लोटपोट हम सबको।
वो करिश्मा का करिश्मा
करता ए॰आई॰ को फेल।
वो हम पांच के जन
करते परिवार का पूरा मनोरंजन।
वो चित्रहार, बाइस्कोप
और रंगोली का कार्यक्रम।
वो 'बुनियाद' जो बनाती
परिवार की नींव मजबूत
और कराती रिश्तो के एहसास।
वो क्रिकेट मैच के जुनून में,
स्कूल से जल्दी दौड़ के आना।
वो शनिवार और रविवार को
करना इंतजार फिल्मों का।
वो हरी मिर्ची और लाल मिर्ची की
तू-तू और मैं-मैं।
वो आर॰ के॰ नारायण के
मालगुडी डेज़ की अनमोल कहानियां।
वो प्रेमचंद के गोदान और निर्मला की वेदना।
वो गली-गली सिम-सिम की धुन,
कुछ तो मस्त बात है इस जगह की ।
वो पंचतंत्र के कार्टूनों
के मनमोहक दृश्य।
वो मोगली का खिल जाना
बघीरा और बलू के बीच।
वो रामानंद सागर की रामायण और श्रीकृष्ण।
वो गंगा उपनिषद और चाणक्य का ज्ञान।
वो महाभारत सा महाकाव्य
करता प्रकट जीवन का सही रूप।
वो शिवपुराण, विष्णुपुराण और
साई बाबा की अनमोल सीखें।
वो टी॰ वी॰ के शौक की यादें,
आती हमें अभी भी।
चलो डूब जाए उन,
बचपन की यादों में फिर एक बार।